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शिवलिंग पूजा की प्रासंगिकता और महत्ता

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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औघड़दानी शिव सदा,देते हैं वरदान। पिंडी की पूजा करो,पाओ जीवन-मानll
देवों के देव महादेव जो प्रकृतित: भोले भंडारी हैं,सरल हृदयी व दयालु हैं,तथा भक्त वत्सल हैं,उनकी पूजा विविध रुपों में की जाती है। वस्तुत: ब्रह्मा,विष्‍णु और महेश में केवल शिव ही हैं जिनके लिंग स्वरुप की पूजा की जाती हैl भगवान शिव के लिंग की पूजा का काफी महत्व हैl शिवलिंग पर फूल,दूध,दही,जल आदि चढ़ाने से साधक को मनवांछित फलों की प्राप्ति होती हैl शिव पुराण में भगवान शिव के लिंग की पूजा और महत्व के बारे में बताया गया हैl विभिन्न ऋषियों के यह पूछे जाने पर कि भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा क्यों होती है,जबकि किसी अन्य देवता की पूजा इस रूप में नहीं की जाती हैl सूतजी कहते हैं-शिवलिंग की स्थापना और पूजन के बारे में कोई और नहीं बता सकताl भगवान शंकर ने स्वयं अपने ही मुख से इसकी विवेचना की हैl इस प्रश्न के समाधान के लिए भगवान शिव ने जो कुछ कहा है,और उसे मैंने गुरूजी के मुख से जिस प्रकार सुना है,उसी तरह क्रमश: वर्णन करुंगाl एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण ‘निष्कल’(निराकार) कहे गए हैंl रूपवान होने के कारण उन्हें ‘सकल’ भी कहा गया है,इसलिए वे सकल और निष्कल दोनों हैंl शिव के निराकार होने के कारण ही उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही प्राप्त हुआ हैं। अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है।
इसी तरह शिव के सकल या साकार होने के कारण उनकी पूजा का आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता है,अर्थात शिव का साकार विग्रह उनके साकार स्वरुप का प्रतीक होता हैl सकल और अकल (समस्त अंग-आकार-सहित निराकार) रूप होने से ही वे ‘ब्रह्म’ शब्द से कहे जाने वाले परमात्मा हैंl सनतकुमार के प्रश्‍न के उत्तर में श्री नंदिकेश्‍वर ने यही जवाब दिया थाl उन्होंने कहा था कि भगवान शिव ब्रह्मस्वरूप और निष्कल (निराकार) हैं,इसलिए उन्हीं की पूजा में निष्कल लिंग का उपयोग होता हैl सनतकुमार के सवाल के जवाब में नंदिकेश्वर कहते हैं-ब्रह्मा और विष्णु भगवान शंकर को प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़ उनके दायें-बायें भाग में चुपचाप खड़े हो गए,फिर उन्होंने वहां साक्षात प्रकट पूजनीय महादेव को श्रेष्ठ आसन पर स्थापित करके पवित्र पुरुष-वस्तुओं द्वारा उनका पूजन किया। इससे प्रसन्न हो भक्तिपूर्वक भगवान शिव ने वहां नम्रभाव से खड़े उन दोनों देवताओं से मुस्कराकर कहा-आज का दिन एक महान दिन हैl इसमें आप दोनों द्वारा जो आज मेरी पूजा हुई है,इससे मैं बहुत प्रसन्न हूँl इसी कारण यह दिन परम पवित्र और महान से महान होगाl आज की यह तिथि ‘महाशिवरात्रि’ के नाम से विख्यात होकर मेरे लिए परम प्रिय होगीl जो महाशिवरात्रि को दिन-रात निराहार एवं जितेन्द्रिय रहकर अपनी शक्ति के अनुसार निश्चलभाव से मेरी यथोचित पूजा करेगा,उसको विशेष फल मिलेगाl भगवान कहते हैं-पहले मैं जब ‘ज्योतिर्मय स्तम्भरूप से प्रकट हुआ था,वह समय मार्गशीर्ष मास में आर्द्रा नक्षत्र से युक्त पूर्णमासी या प्रतिपदा हैl जो पुरुष मार्गशीर्ष मास में आर्द्रा नक्षत्र होनेपर पार्वती सहित मेरा दर्शन करता है,अथवा मेरी मूर्ति या लिंग की ही झाँकी करता है,वह मेरे लिए कार्तिकेय से भी अधिक प्रिय हैl उस शुभ दिन को मेरे दर्शन मात्र से पूरा फल प्राप्त होता हैl वहां पर मैं लिंग रूप से प्रकट होकर बहुत बड़ा हो गया था। अत: उस लिंग के कारण यह भूतल ‘लिंगस्थान’ के नाम से प्रसिद्ध हुआl यह लिंग सब प्रकार के भोग सुलभ कराने वाला तथा भोग और मोक्ष का एकमात्र साधन है। इसका दर्शन,स्पर्श और ध्यान किया जाए तो यह प्राणियों को जन्म और मृत्यु के कष्ट से छुड़ाने वाला है।
हर बंधन को काटकर,करते जो कल्यान। वे शिव पूजित हैं सदा,हैं सच्चे भगवानll पूजा शिव की अर्चना,है सचमुच वरदान। बन जाता जो मांगलिक,नेह भरा अरमानll

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैl आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैl एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंl करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंl साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंl  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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