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मुंडेर पर रिश्ते

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
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आज के माहौल में रिश्ते,
मुंडेर में बैठे हुए हैं
हम खाली बर्तनों की तरह,
घरों में ऐंठे हुए हैं।

भावनाओं की कश्ती जो,
कभी खेते थे हम
जर्जर हो चुकी वो,
और छितरा गए हम।

मुंडेर पे कागा बोलता था,
खुश होते थे हम
कौन आएगा कहां से,
अंदाज़ा लगाते थे हम।

संस्कारों के बीज सूख गए,
फ़सल उगेगी अब कैसे
दिन-रात मन्त्रणा चलती,
माँ-बाप को निकालेंगे ऐसे।

कागा भी होशियार हो गया,
देख इंसानों का व्यवहार
श्राद्ध में आता मुंडेर पर,
साल में बस एक ही बार।

इतना विकास किया हमने है,
कि अब महलों में रहते हैं
अहम के मारे घर-बाहर,
हम बहुत दिखावा करते हैं।

घर के अंदर ही देखो,
कौन दिल से जुड़ा हुआ है
दो पैसों के बल पर हर कोई,
फटा नोट-सा पड़ा हुआ है।

हमने भी मुंडेर पर गठरी में,
भावनाएं बांध कर रख दी हैं
खोलेगा जब कोई उसे तो,
आशीष उसी में भर दी है॥

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम ‘उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है। आपकी लेखन विधा कविता,गीत, कहानी और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली भाषा में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में विविध विधा में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैL साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।

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