संजय गुप्ता ‘देवेश’
उदयपुर(राजस्थान)
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वसंत पंचमी स्पर्धा विशेष …..
विद्यादायिनी,वीणावादिनी आपका अभिनन्दन।
कर बद्ध मैं करता हूँ,माँ शारदे को सदा नमन॥
मुझ अज्ञानी को,ज्ञान का दान करो मेरी माँ,
मुझ नासमझ को,बुद्धि प्रदान करो मेरी माँ।
मैं अविवेकी,विद्या का जगहित उपयोग कर पाऊँ,
बस यही सर्वदा,मुझ पर एहसान करो हे माँ।
तेरे चरणों से ही मिले मुझे,मेरा सफल जीवन,
कर बद्ध मैं करता हूँ माँ शारदे को सदा नमन…॥
शुक्ल वर्ण,शुक्लाम्बरा,वीणा-पुस्तक धारिणी,
श्वेत पद्मासन,हे माँ पुण्य,पावन और मानिनी।
मधुर नाद के आपसे,इस जग को मिली है वाणी,
राग,रागिनी,शब्द,ज्ञान,वाणी,कला की दायिनी।
हे सरस्वती,वागेश्वरी,यह तन-मन-धन अर्पण,
कर बद्ध मैं करता हूँ माँ शारदे को सदा नमन…॥
बुद्धि,प्रज्ञा,मनोवृत्ति की आप ही हैं संरक्षिका,
आचार और मेधा हमारी,उसकी करती हैं रक्षा।
साहित्य,संगीत,कला का उद्गम सभी आपसे,
विचारणा,भावना,संवेदना जिसमें सदा बसा।
भौतिक बौद्धिक विज्ञान विकास आपसे संपन्न,
कर बद्ध मैं करता हूँ माँ शारदे को सदा नमन…॥
परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।