कुल पृष्ठ दर्शन : 293

You are currently viewing नमन शहीदों वतन प्यार पे

नमन शहीदों वतन प्यार पे

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

****************************************************************************

शहादत शहीद अरु मोहब्बतें,
ध्वजा तिरंगा हाथ थाम के।
बने सारथी मातु भारती,
चले विजय रण कफ़न बांध केl
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

भारत माँ के लाल अनोखे,
तन मन धन न्यौछावर कर देl
गज़ब मुहब्बत आन वतन के,
दिए शहादत बन शहीद केl
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

रनिवासर सीमा प्रहरी वे,
जल थल नभ उत्तुंग शिखर पेl
महाकाल विकराल मौत बन,
दुश्मन दल पर कहर टूटतेl
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

तजे सकल परिवारिक रिश्ते,
भारत माँ के पूत दूलारे।
सागर जंगल पर्वत दर्रे,
चले साहसी दुर्गम पथ पेl
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

आत्मबली रणधीर बाँकुरे,
महाप्रलय शत्रुंजय बन के।
मोहरहित जीवन चिन्ता से,
नित शहीद बन दी शहादतें।
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

भारत माँ ममतांचल नीचे,
शौर्य मुहब्बत नित स्वीकारे।
वीर सपूत तिरंगा लिपटे,
भारत माँ लोचन भर आए।
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

शहादतें भारत चरणों में,
वतन कर्ज़ बलिदान उतारे।
अमर मुहब्बत भक्ति देश पे,
हे शहीदों! ऋणी जनता ये।
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

व्यर्थ न जाएगी कुर्बानी,
रिपुमर्दन हम करने वाले।
नाम निशां नापाक मिटाने,
बदला लेंगें गिन शहीद के।
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

हे शौर्यवीर तुम अमर जीत हो,
भारत प्रमुदित कोख़ सुहाने।
अचल कीर्ति अनमोल धरोहर,
चन्द्र भानु सागर यश गाएँ।
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

मातु पिता स्वधन्य तुम्हारे,
वतन शहादत स्वर्ग सिधारे।
मातृभूमि जननी द्वय पुलकित,
पा कर्मवीर जयगान करे।
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

अज़ब मुहब्बत गज़ब शहादत,
जज़्बात राष्ट्र परवान चढ़े।
महारथी रणकौशल शहीद,
आतंक पाक चीनी थर्राये।
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

गज़ब वीरता अज़ब धीरता,
सियाचीन शिखर व द्रास चढ़े।
लहराए तिरंग ध्वजा वतन,
हे शहीद! युग यशगान करें।
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

कुसुमित सुगंध कविता `निकुंज`,
निज शब्द नीर तव चरण धुले।
नित कृतज्ञ लखि वीर शहादत,
नमन शहीदों वतन प्यार पेll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply