कुल पृष्ठ दर्शन : 328

हिन्दी में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:प्रसार की लकीरें

डॉ. ओम विकास
***************************************************************
२०वीं सदी में आर्थिक विकास का आधार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी रहा। नवाचार एवं आविष्कारोन्मुखी प्रवृत्ति से समाज विकसित और अविकसित वर्गों में बँटने लगे। २१वीं सदी में संज्ञानिकी का प्रबल प्रभाव है। लोक संस्कृति की संरक्षा की चिंता बढ़ने लगी है।प्रतिवर्ष २ प्रतिशत विश्व भाषाओं का लोप होता जा रहा है। प्रति वर्ष लगभग ६० लाख पृष्ठ विज्ञान शोध पत्रिकाओं में,और लगभग १६५ लाख पृष्ठ विज्ञान पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हो रहे हैं। आधुनिक विज्ञान नागरी में नगण्य है,परिणाम-
लोक व्यवहार में नव नवीन वैज्ञानिक सोच और प्रौद्योगिकी का अभाव,और परमुखापेक्षी समाज का सातत्य। इसलिए प्राथमिकता हो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में नागरी प्रयोग का संवर्धन। संक्रमण काल में भारत के न्यूनतम लक्ष्य विश्व लक्ष्यों के लगभग ०.५ प्रतिशत हो सकते हैं।
भारत में २०१०-२०२० इनोवेशन डिकेड अर्थात् नवाचार दशक मनाया जा रहा है। साइंस कांग्रेस में प्रधानमंत्री ने घोषणा कर दी। इति श्री। पहले से चले आ रहे कार्यक्रम, जैसे-विज्ञान रेलयात्रा,विज्ञान प्रसार आदि उसी गति से चल रहे हैं।
विज्ञान प्रसार का पहला ल्क्ष्य कार्य होता है अंधविश्वासों की अवैज्ञानिकता को सिद्ध करना;लेकिन अंधविश्वासों को मात्र झुठलाते रहने से काम नहीं बन रहा। कानूनी रोक का कोई प्रावधान नहीं बन पाया। आये दिन नए-नए प्रकरण चर्चा में आ रहे हैं। इसके मूल कारण पर कुठाराघात करने की आवश्यकता है। मूल कारण है प्राथमिक शिक्षा में लोक भाषा को हेय बनाते जा रहे हैं,सरकार की इस अवैज्ञानिक नीति से विज्ञान के प्रति अभिरुचि नहीं बन पा रही;आम आदमी बच्चों से विज्ञान सम्मत संवाद नहीं कर पा रहा।
विज्ञान प्रसार का दूसरा स्वयं सुखाय कार्य है खबरिया लेखन। अखबारों की नीति व्यवसायपरक है,सैक्स,हिंसा,बलात्कार की खबरें प्रधानता पाती हैं;विज्ञान और नैतिकता गौण बन गए हैं। खबरिया लेखन से कम से कम हिन्दी में कुछ विज्ञान सम्बंधी सूचनात्मक सामग्री प्रकाशित होती रहती है । आवश्यकता है हिन्दी में अधिक से अधिक विश्लेषणात्मक सामग्री के प्रकाशन की। लक्ष्य हो आम आदमी आविष्कारोन्मुखी बने,समस्या का स्वयं विज्ञान सम्मत समाधान निकालने को उत्सुक रहे। अभी तक विश्व में वैज्ञानिकों की तीसरी बड़ी जनसंख्या वाले भारत में विज्ञान अथवा प्रौद्योगिकी का एक भी सावधि (मासिक) शोधपरक जर्नल प्रकाशित नहीं होता है। हिन्दी में लिखे को प्रौन्नति के समय माना नहीं जाता,न तो सरकारी विभागों में और नहीं एकेडमिक-शैक्षणिक क्षेत्र में। फिर कौन लिखे,क्यों लिखे ? विज्ञान प्रसार के लक्ष्यों में इसे कोई स्थान नहीं।
विज्ञान प्रसार का तीसरा प्रस्तुतीय लक्ष्य है संगोष्ठी आयोजन। श्रेष्ठ कार्य है,इस बहाने से कभी-कभार समान विचार धारा के चिंतावान मिल बैठ सुन-सुना लेते हैं;लेकिन लक्ष्य क्या थे,कहाँ तक पहुँचे,क्या अवरोध थे,किन-किन साधनों की कमी रही,कितना वित्त प्रावधान किए जाने की आवश्यकता है,अन्य देशों के लिए विज्ञान प्रसार प्रारूप या प्रादर्श(मॉडल) देने में कितने समर्थ रहे,इत्यादि अनेक प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं।
विज्ञान प्रसार की कुछ लकीरें खींचने से काम नहीं चलेगा,बड़ा केनवास बनाने की जरूरत है। विज्ञान प्रसार के दूरगामी लक्ष्य निर्धारित किए जाने की जरूरत है। आम आदमी की जरूरत/माँग को औपचारिक लक्ष्य आँकड़ों के रूप में रखना आवश्यक है। तदनुसार माँग-आपूर्ति श्रंखला सुनिश्चित की जाए।
शिक्षा,विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी,और प्रसार
प्रविधि तीन प्रमुख क्षेत्रों में कतिपय सुझाव इस प्रकार हैं-
#शिक्षा-
θउच्च तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम में प्रथम वर्ष की पढ़ाई हिन्दी,लोकभाषा, इंग्लिश में मिश्रित हो। निजी उच्च तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में भी ग्रामीण अंचल के गरीब विद्यार्थियों को २५ प्रतिशत प्रवेश का प्रावधान हो, जैसा शालेय शिक्षा में सम्भव हो सका है।(उच्च तकनीकी शिक्षा संस्थानों , जैसे-एआईआईएमएस,आईआईटीके, आईआईटीडी,आईआईटीबी आदि के प्रथम वर्ष में ही आत्महत्या कर लेने वाले मेधावी किशोरों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दें। अपनी भाषा में उच्च शिक्षा से वंचित विवश हुए आत्महत्या की घटनाओं पर असंवेदनशील हैं शिक्षा प्रशासक और योजनाकार।)
Θगणित-आईटी ओलम्पियाड की भांति विज्ञान ओलम्पियाड हिन्दी में आयोजित किए जाएं,प्रतियोगिताएं विद्यालय,महाविद्यालय स्तर की और व्यावसायिक प्रयोग स्तर की हो सकती हैं। विज्ञान की सामान्य जानकारी के साथ हिन्दी भाषा एवं लिपि की रचनात्मक वैज्ञानिकता की जानकारी की प्रतियोगिताएं हों। कैलीग्राफी,लिपि व्याकरण,मानक वर्तनी,लिप्यंतरण आदि पर प्रश्न हों।
Θप्राथमिक शिक्षा में विज्ञान का अध्ययन लोक भाषा हिन्दी में हो। आई टीआई,डिप्लोमा स्तर का अध्यापन लोकभाषा हिन्दी में,और उच्च शिक्षा के प्रथम वर्ष की पढ़ाई अंग्रेजी-हिन्दी मिश्रित रूप में हो।
Θविज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में राजभाषा हिन्दी में शोध पत्रिकाओं का सावधि प्रकाशन हो। इनमें प्रकाशित लेखों को प्रौन्नति के समय प्राथमिक वरीयता/समान मान्यता दी जाए।
Θविद्यालयों,महाविद्यालयों,विश्व विद्यालयों में हिन्दी में इंटरनेट सुविधा, ओपन डोमेन में शैक्षणिक सॉफ्टवेयर, यूटिलिटी आदि कम्प्यूटर पर पूर्व प्रदर्शित हों।
#प्रौद्योगिकी-
Θनागरी लिपि के कम से कम १० सुंदर मानक ऑपेन टाइप फोंट(अक्षर)
व्यावसायिक प्रयोग के लिए भी मुफ्त, मुक्त ओपन डोमेन में सर्वसुलभ कराए जाएं। यह जनहित में दूरगामी कदम होगा।
Θविद्यालयों-महाविद्यालयों में नागरी ओसीआर,ओपन ऑफ़िस,ग्रंथालय सूचना प्रक्रिया,एकाउंटिंग साफ्टवेयर, शाला प्रबन्धन साफ्टवेयर आदि उपलब्ध कराए जाएं। भारतीय भाषा कम्प्यूटिंग सुविधा अनिवार्य हो। कम्प्यूटर की खरीद में नागरी की-बोर्ड और पूर्व प्रदर्शित भारतीय भाषा सॉफ्टवेयर एवं उपयोगिता अनिवार्य हों।
Θनागरी टंकण के लिए इनस्क्रिप्ट
मानक और लिप्यंतरण के लिए नागरी-रोमन मानक आईएनएसआरओटी के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए।
Θवेब पर डोमेन नेम नागरी में भी स्वीकार्य हों। इनकी उपलब्धता को आईसीएएनएन से स्वीकृति तो मिली है,लेकिन इसके प्रयोग प्रसार को भारत सरकार सुनिश्चित करे।
Θनागरी में कंटेट क्रियेशन,वेब सर्विस इंटीग्रेशन और एक्सएमएल आदि मानकों पर भी काम किया जाए। नागरी लिपि पर आधारित फोनीकोड का विकास किया जाए। यूनीकोड ग्राफिम(रूपिम)आधारित है, फोनीकोड फोनिम (स्वनिम)आधारित है। अक्षर (सिलेबल) ध्वनि को कोडित करते हैं। यह भारत की विशिष्ट देन होगा।
Θविज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रमुख विषयों पर शोध-पत्रिकाओं और शोध ग्रंथों के प्रकाशन लक्ष्य निर्धारित किए जाएं,और तदनुसार कार्यवाही हो।
Θप्रयोगशाला में सभी उपकरणों पर नाम और विशिष्टताओं का हिन्दी में भी उल्लेख हो। मेन्युअल हिन्दी में भी हों,जिसे प्रयोगशाला सहायक भी आसानी से समझ सकें। प्रयोगशाला में उपकरण सुधार और नए प्रोजेक्ट डिजायन से प्रयोगशाला सहायकों में विज्ञान की समझ का आकलन सम्भव है।
Θकम से कम एक छोटी योजना की रिपोर्ट हिन्दी में भी हो,तकनीकी प्रोजेक्ट डिजायन की मौखिक प्रस्तुति परीक्षा में आस-पास के किसान,व्यापारी आदि प्रयोगकर्ताओं को भी बुलाया जाए। उनके प्रश्नोत्तरों से विज्ञान प्रसार के प्रभाव को मापा जा सकता है।
#प्रसार प्रविधियाँ-
Θराज्य स्तर की पर्यटन सूचनाएं नागरी लिपि में भी हों,क्योंकि धर्म स्थलों और पुरातत्व अवशेषों को देखने जन सामान्य पर्यटक पूरे देश से आते हैं।
Θशिक्षा में भारतीय भाषाओं और लिपि के प्रयोग संवर्धन की दिशा में विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। सभी सरकारी विभागों और इनके सभी प्रतिष्ठानों में हिन्दी में वेबसाइट पर कंटेंट अद्यतन किए जाने की समय समय पर समीक्षा हो।
Θज्ञान पूर्ति के लिए अनुवाद आवश्यक है,लेकिन सरकारी कार्यालयों में वर्तमान अनुवाद विधा ने हास्यस्पद स्थिति में ला खड़ा किया है। अनुवाद लेखक-उन्मुखी है,प्राय: एक-व्यक्ति परक है। प्रस्तावित है अनुसृजन विधा जो पाठक-केन्द्रित है,टीम परक है,सुबोध और नवाचार प्रेरक है।
Θविज्ञान लेखन की समालोचना का अभाव है,इस दिशा में विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
Θइनोवेशन डिकेड में मीडिया की भूमिका को विज्ञान परक बनाने के लिए नीति निर्धारण और मीडिया के प्रबंध निर्णायकों से बात कर विज्ञान प्रसार की दिशा में प्रभावकारी कदम उठाने की आवश्यकता है।
Θनिगरानी के लिए एक स्वतंत्र समीक्षा संस्था बनाई जाए जो लक्ष्य और दयित्व निर्धारित करे,और समय-समय पर हिन्दी में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रयोग, व्यवहार एवं शोध प्रगति,विज्ञान प्रसार कार्यक्रमों के प्रभाव और प्रयोग-प्रसार की समस्याओं पर सर्वे कर परिणाम प्रकाशित करे,तथा केन्द्रीय एवं राज्य सरकार में नीति अनुपालन के लिए दबाब डाले।
~प्रस्तावित लक्ष्य एवं दायित्व
लक्ष्य-
उच्च तकनीकी शिक्षा में पाठ्यक्रम में प्रथम वर्ष की पढ़ाई हिन्दी-इंग्लिश मिश्रित भाषा में हो। नागरी ओलंपियाड, वर्तनी मानकीकरण।
दायित्व-
मानव संसाधन विभाग,विवि अनुदान आयोग,एआईसीटीई,एमसीआई आदि तथा राज्यों के शिक्षा विभाग।
लक्ष्य-
सरकारी अनुदान से विकसित फोंट, सॉफ्टवेयर आदि सूचना प्रौद्योगिकी व्यावसायिक स्तर भी जनहित में प्रयोग की जा सके। २४x७ हेल्पलाइन हो। डोमेन नेम नागरी में हो। फोनीकोड का विकास हो। मानकों का अनुपालन हो।
दायित्व-
सूचना प्रौद्योगिकी विभाग
राजकीय कार्यालयों,शालाओं, तकनीकी संस्थानों में कम्प्यूटर,’आकाश’ टेबलेट की खरीद में नागरी की-बोर्ड एवं हिन्दी सॉफ्टवेयर पूर्व प्रदर्शित अनिवार्य हो। पर्यटन स्थलों के नाम संकेत व दुकानों केविज्ञापन पटों पर जगह जानकारी नागरी में हो। यथासंभव वैज्ञानिक विश्लेषण भी दिया जाए।
सभी राज्यों के पर्यटन विभाग-एयरलाइन व राजधानी आदि में नागरी परिचय और संक्षिप्त सुबोध पर्यटन परिचय राजभाषा
हिन्दी में हो। प्राचीन विज्ञान उपलब्धियों की जानकारी प्रेरणास्पद होगी।
नागर विमानन विभाग,रेल विभाग-
राजभाषा हिन्दी के लक्ष्य एवं दायित्व निर्धारण,तथा राजकीय कार्य एवं दायित्व की समीक्षा,और अनुपालन नीति सम्मत कार्यवाही हो।
राजभाषा विभाग-विज्ञान प्रसार लक्ष्य एवं दायित्व निर्धारण,समीक्षा,और अनुपालन नीति सम्मत कार्यवाही हो।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
स्वतंत्र सर्वे एवं सघन समीक्षा
गैर-सरकारी संस्था संघ
~सर्वे के लिए कुछ विषय बिन्दु-
oएनसीईआरटी/सीबीएसई की हिन्दी भाषा पुस्तकों में विज्ञान संबंधी पाठ- कितने प्रतिशत,इनका आविष्कारात्मक प्रवृति के विकास में कितना योगदान ?
oविद्यालयों में नागरी लेखन,लिपि व्याकरण, अंक,गिनती,श्रुतिलेखन,और नागरी लेखन सौष्ठव(कैलिग्राफी)स्थिति,इंग्लिश-सापेक्ष
स्थिति
oउच्च तकनीकी एवं चिकित्सा शिक्षा के पाठ्यक्रमों में नागरी परिचय एवं राजभाषा हिन्दी में संवाद-अभिव्यक्ति की क्षमता
oउच्च तकनीकी एवं चिकित्सा शिक्षा के प्रथम(संक्रमण)वर्ष में हिन्दी,लोक भाषा और इंग्लिश के मिश्रित रूप में पढ़ाई,असाइनमेंट,परीक्षा कितने महाविद्यालयों-संस्थानों में ?
oउच्च तकनीकी एवं चिकित्सा शिक्षा में प्रथम एवं द्वितीय वर्ष में कितने छात्र आत्महत्या करते हैं,और कारण विश्लेषण एवं सुझाव।
oसरकारी विभागों से वित्त पोषित विज्ञान एवं तकनीकी संगोष्ठी- कार्यशालाओं में कितने प्रतिशत पेनल डिस्कशन,चर्चाएं हिन्दी/लोक भाषा में।
oसरकारी विभाग वार हिन्दी में कितने शोध पत्रों का प्रकाशन और प्रौन्नति में उनको प्राथमिक वरीयता/अंग्रेजी में शोध पत्र के समान मान्यता।
oसरकारी विभाग वार हिन्दी में कितनी शोध-पत्रिकाओं के प्रकाशन की व्यवस्था है,और
लक्ष्य से कितने दूर।
oसरकारी विभागों से दिए विज्ञापनों में कितने हिन्दी में दिए जाते हैं।
oविदेश से आए विज्ञान-प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों के लिए कितने केन्द्रीय तकनीकी संस्थानों-विश्वविद्यालयों में हिन्दी का व्यवहारपरक ज्ञान कराया जाता है।
oलोक भाषा/हिन्दी में प्राथमिक अध्ययन से समाज के प्रति संवेदनशीलता,रचनात्मकता,
दल कार्य,आविष्कारोन्मुखी प्रवृति पर प्रभाव इत्यादि।
~विज्ञान प्रसार का मूल्यांकन-
#व्हाट-क्या
लक्ष्य परिणाम
#हूम-किसको
लाभांवित लोग
#हाउ-कैसे
नए तरीके
#व्हेयर-कहाँ-कहाँ
नवाचारमय विज्ञान प्रसार समूह-
संस्थाओं का नेटवर्क,किस आयाम में कितनी प्रगति की,इसका अनुमान
लगाकर विज्ञान प्रसार प्रयासों का मूल्यांकन किया जा सकता है। जहाँ-जहाँ कमी हो,वहाँ नई प्रसार प्रविधि से प्रसार किए जाएं। विज्ञान साहित्य की सतत समालोचना/समीक्षा से ही विज्ञान लेखन सुबोध,रोचक और परिपक्व होगा।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

Leave a Reply