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खुदगर्जी

मेहविश खान,
मुंबई(महाराष्ट्र)
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मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष….


मैं एक गौरैया हूँ! आज मैं आपको अपनी कहानी सुनाना चाहती हूँ। वैसे तो मकर संक्रांति खुशियों का त्योहार होता है,लेकिन इसकी एक सच्चाई है जिससे बहुत कम लोग परिचित हैं। संक्रांति में लोग पतंग उड़ाते हैं,आसमान पतंगों से भरा होता है, लेकिन इसके बीच कोई ऐसा भी है जिसके लिए यह त्योहर जानलेवा होता है।
आप सभी मकर संक्रांति पर खूब पतंग उड़ाएंगे,खूब तिल-गुड़ खाएंगे। आपको आपके मम्मी-पापा खूब सारी पतंग,मांजा,फिरकी लाकर देंगे,पर मैं…मैं तो अकेली हूँ। जब भी मकर संक्रांति आती है मुझे याद आती है अपने मम्मी-पापा की। तब मैं बहुत छोटी थी,मेरे पंख बहुत नाजुक थे। मैं उड़ भी नहीं सकती थी। बस मैंने आँखें ही खोली थी। मेरे मम्मी-पापा सुबह होते ही दाना-पानी के लिए भटकने निकल जाते थे। उस दिन भी वे दोनों मेरे लिए दाना जुटाने निकल पड़े थे। मैं अपने घोंसले में बैठकर बाहर के नजारे देख रही थी। हँसते-खेलते बच्चों को देखकर मेरा दिल प्रसन्न हो गया,लेकिन एक अजीब-सी घबराहट भी हो रही थी।
तभी मैंने देखा,पड़ोस के पेड़ पर रहने वाली चिड़िया के बच्चे खेलते-खेलते बाहर निकल आए। मैं उन्हें फुदकते हुए देख ही रही थी कि अचानक पतंग के चीनी मांजे में एक छोटा बच्चा उलझ गया। चीं चीं चीं की तेज आवाज के साथ वह चीख रहा था,पर सब लोग त्योहार की मस्ती में इतने डूबे थे कि किसी को वह आवाज सुनाई नहीं दी। बच्चे चीनी मांजे को खींच रहे थे और वह बच्चा खून से तरबतर होकर छटपटाता रहा। कुछ देर में उसके कोमल पंख अलग हो गए…यह देख मैं डर गई… जोर-जोर से रोने लगी…। मुझे अब अपनी माँ और पिता की चिंता सताने लगी। कहां होंगे मेरे मम्मी-पापा…? कैसे उड़ रहे होंगे वह आकाश में…आकाश में तो बिलकुल भी जगह नहीं बची… और यह चीनी धागा कितना खतरनाक है…! इसी में उलझ कर तो अभी चिड़िया का बच्चा मर गया है। मेरा मन भारी हो रहा था।
तभी अंधेरे में मुझे अपने पापा लड़खड़ाते-उड़ते हाल-बेहाल आते दिखाई दिए। मैं जोर-जोर से चहकने लगी। मैंने देखा उनके पंख कटे हुए थे,हर तरफ से खून बह रहा था। मेरा दिल दहल गया। वह हिचकिचाते हुए बोले-‘तुम्हारी माँ नहीं आएगी, उसके दोनों पंख पतंग के मांजे में उलझ कर कट गए हैं और उसने वहीं तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया है।’ यह सुनते मानो मेरे पैरों तले जमीन फिसल गई। उन्होंने आखिरी साँस लेने से पहले कहा- ‘बेटा इन इंसानों की दुनिया में जीना बहुत मुश्किल है,तुम अपना ध्यान रखना।’ पापा ने मेरी तरफ देखते-देखते आँखें बंद कर ली। मैं अकेली रह गई।
फिर मकर संक्रांति है। मुझे डर है कि कहीं मैं भी बीच आकाश में उलझ कर मर ना जाऊं…। फिर सोचिए कि,इस आकाश में आज के दिन कितने पंछी उलझ कर दम तोड़ देते हैं,कितने बच्चे मेरी तरह अकेले रह जाते हैं और कितने मम्मी-पापा अपने नन्हें बच्चे के लिए रोते रह जाते हैं,उस चिडिया की तरह…। मैं चाहती हूं कि पतंग वहीं उड़े, जहां पंछी ना उड़ते हों। अगर सब लोग ऐसा करें, तो मेरे जैसे हजारों पक्षियों की जान बच जाएगी।

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