कार्तिकेय त्रिपाठी ‘राम’
इन्दौर मध्यप्रदेश)
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काव्य संग्रह हम और तुम से….
प्रेम का धंधा ना हो मंदा
मन चंगा तो कटौती में गंगा,
ऊंच-नीच का ना हो फंदा
मनभर बांटो प्रेम का चंदा।
मन चंगा…
दिल में हो कोई घाव जो गहरा
मीठी यादों का धर दो पहरा,
धूप-छाँव का बांध के सेहरा
खुशियों से भर अपना चेहरा।
मन चंगा…
मेरा-मेरा बस करते हैं
अपनों से क्यूं ये कटते हैं,
कौन बपौती लेकर आया!
हम तो सबसे ये कहते हैं।
मन चंगा…
किस-किसको अब याद करें हम
सुर में भर लें मीठी सरगम,
नहीं रुकेंगे अब कोई ग़म
ठान लें बस मन में हरदम।
मन चंगा…
गिनती की मिलती हैं श्वांसें
मन चोटिल करती हैं फांसें,
बीती चाहे बिसारो भैया
सरपट दौड़े जीवन नैया।
मन चंगा…
प्रेम-प्यार के शब्द में बंधना
हो जीवन का एक ही सपना,
आओ हिल-मिल करें गलबहियां
प्रेम के रस से भर दें नदियां।
मन चंगा…तो कटौती में गंगा॥
परिचय–कार्तिकेय त्रिपाठी का उपनाम ‘राम’ है। जन्म ११ नवम्बर १९६५ का है। कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) स्थित गांधीनगर में बसे हुए हैं। पेशे से शासकीय विद्यालय में शिक्षक पद पर कार्यरत श्री त्रिपाठी की शिक्षा एम.काम. व बी.एड. है। आपके लेखन की यात्रा १९९० से ‘पत्र सम्पादक के नाम’ से शुरु हुई और अनवरत जारी है। आप कई पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य और फिल्म सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। लगभग २०० पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। आकाशवाणी पर भी आपकी कविताओं का प्रसारण हो चुका है,तो काव्यसंग्रह-‘ मुस्कानों के रंग’ एवं २ साझा काव्यसंग्रह-काव्य रंग(२०१८) आदि भी प्रकाशित हुए हैं। काव्य गोष्ठियों में सहभागिता करते रहने वाले राम को एक संस्था द्वारा इनकी रचना-‘रामभरोसे और तोप का लाईसेंस’ पर सर्वाधिक लोकप्रिय कविता का पुरस्कार दिया गया है। साथ ही २०१८ में कई रचनाओं पर काव्य संदेश सम्मान सहित अन्य पुरस्कार-सम्मान भी मिले हैं। इनकी लेखनी का उदेश्य सतत साहित्य साधना, मां भारती और मातृभाषा हिंदी की सेवा करना है।