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शांति निकेतन

डॉ. स्वयंभू शलभ
रक्सौल (बिहार)

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भाग -९…………
ओडिसा की राजधानी भुवनेश्वर चतुर्दिक मंदिरों से घिरा होने के मंदिरों का नगर कहलाता है। अपनी समृद्ध पुरातन संस्कृति के कारण इसकी अपनी एक अलग पहचान है। केसरी वंशीय राजाओं ने चौथी शती के उत्तरार्ध से ११वीं शती के पूर्वार्ध तक लगभग ६७० वर्ष (४४ पीढ़ियों) तक उड़ीसा पर शासन किया और लगभग इस पूरी अवधि में भुवनेश्वर ही उनकी राजधानी रही। राजा ययातिकेसरी ने ४७४ ई. में भुवनेश्वर में पहली बार अपनी राजधानी बनाई थी। कालक्रम में केसरी नरेशों ने भुवनेश्वर में लगभग ७ हजार मंदिरों की स्थापना कर इस नगर को एक धार्मिक केन्द्र के रूप में विकसित किया। वर्तमान में केवल ५०० मंदिर ही शेष हैं,जिनका निर्माण काल ५०० ई. से ११०० ई. के बीच का है।
लिंगनाथ मंदिर दर्शन के बाद हमारा अगला लक्ष्य ‘परशुरामेश्वर मंदिर’ दर्शन का था…यहां मंदिर के उत्तरी भाग में एक ‘सहस्त्र लिंग’ स्थापित है,जिसे ‘कोटिलिंगम’ के नाम से भी जाना जाता है। ४फीट लंबे एक स्तंभ के २० अलग- अलग वृत्ताकार परिधि में छोटे-छोटे १००१ शिवलिंग उत्कीर्ण किए गए हैं। लिंग पुराण में ऐसे सहस्त्र लिंग का उल्लेख मिलता है। मेरी जानकारी में कर्नाटक के उत्तर कन्नड ज़िले में शामला नदी में चट्टानों पर भी सहस्र लिंग बने हैं। इस स्थल को भी ‘सहस्त्रलिंगा’ के नाम से जाना जाता है,पर यहां ये लिंग अलग-अलग स्थापित हैं जबकि परशुरामेश्वर मंदिर में एक स्तंभ में ही सहस्त्र लिंग निर्मित हैं…।भारत के किसी अन्य स्थल पर ऐसा प्रतीक मौजूद है या नहीं,यह शोध का विषय हो सकता है…
६५० ई. में निर्मित इस मंदिर में भगवान शिव के पुत्र कार्तिक की भव्य मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर की दीवारों पर महाभारत एवं रामायणकालीन कथाओं के चित्र उत्कीर्ण हैं। इस आकर्षक मंदिर को प्राचीन नागरा शैली में बनाया गया है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण नक्काशी और हिंदू देवी-देवताओं की जटिल मूर्तिकला उस काल के दक्ष कारीगरों की निपुणता को सिद्ध करती है।
मंदिर में गर्भगृह के पूर्व ‘जगमोहन’ स्थित है,जिसकी छत पत्थरों की पट्टियों से बनी हुई है। छत के बीच में बने हुए झरोखों से मंदिर में प्रकाश आता है। यहां कृत्रिम प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती। मंदिर की छत के ऊपर पिरामिड के आकार की एक दूसरी छत भी बनाई गई है।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर गजाभिषिक्त लक्ष्मी विराजमान हैं तथा भित्तियों पर सप्त मातृकाएं (ब्रह्मणी,वैष्‍णवी,माहेश्‍वरी,वाराही, इंद्राणी,कौमारी और चामुंडा) मौजूद हैं। गणेश,महिषासुर मर्दनी,सूर्य एवं सिंहवाहिनी के अलंकरण भी सुशोभित हैं। ऐसे स्थल अपने-आपमें कई रहस्य समेटे हुए रहते हैं और इन्हें नजदीक से देखना-समझना एक नई दुनिया की खोज करने जैसा अनुभव देता है…।

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