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गृहवास करो अविराम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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जनमानस मझधार में,कोराना संताप।
नभप्रभात आरोग्य जग,मिटे रोग हर पाप॥

इस आपद के समय में,गृहवास करो अविराम।
निर्मल कर श्री राम मन,रख दूरी सुखधाम॥

रख रुमाल कर साफ मुख,कर केहुनी उपयोग।
सब मिल रोकें क्रान्ति कर,भागेगा यह रोग॥

आएगी अरुणिम सुबह,खुशियाँ मुख मुस्कान।
महकेगा गृहवास फिर,आश रखो भगवान॥

कड़ी परीक्षा की घड़ी,फँसो नहीं ज़ज़्बात।
‘कोराना’ भी सीख जग,प्रकृति न कर आघात॥

मानवता है दाँव पर,सब्र करो जन देश।
सभी रहो गृहवास अब,बच कोराना केश॥

लख-लख मौतें सामने,त्राहि-त्राहि संसार।
झोंको मत तुम स्वयं को,मौत खड़ी आहार॥

अमन चैन सुख सम्पदा,सब निर्भर नीरोग।
मान दान अरमान सब,जीओगे तब भोग॥

योगासन दैनन्दिनी,सात्विक हो उपवेश।
रहो सुरक्षित गेह में,भले दूर परिवेश॥

बचे अनोखी जिंदगी,उषा किरण अभिलास।
दो जीवन का कुछ दिवस,बन्द रहो गृहवास॥

सरकारी आदेश को,मानो निज हित काज।
कोराना दुश्मन बड़ा,लड़ना मिलकर आज॥

सूझ बूझ सावधानियाँ,बरते भारत वर्ष।
भागे कोरोना अनल,फिर हो नव उत्कर्ष॥

परिचय दें निज एकता,दूर साफ रनिवास ।
जाति धर्म देखे नहीं,कोरोना खलग्रास॥

रखो सुरक्षा स्वयं का,तभी सुरक्षित देश।
फिर ‘निकुंज’ सुष्मित सुरभि,प्रेम शान्ति संदेश॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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