कुल पृष्ठ दर्शन : 303

You are currently viewing आत्महत्या:निर्बलता को बनाएं शक्ति

आत्महत्या:निर्बलता को बनाएं शक्ति

अल्पा मेहता ‘एक एहसास’
राजकोट (गुजरात)
***************************************

‘सुख में न विवेक खो,
दु:ख में न सहनशीलता।
सुख में हम अगर विवेक खो देते हैं, और दु:ख में सहनशीलता,तो हम कभी मानसिकता से स्थिर नहीं हो पाएंगे…और तब हम असंतोष,राग,द्वेष.. जैसे भावों में उलझते रहेंगे..।
बहुत पुण्य हासिल करने के बाद हमें मनुष्य भव हासिल होता है,और ये हमें अनुशासन के साथ जी के एक मिसाल कायम करनी होती है। हमें सुख-दु:ख से ऊपर होकर सुकून ढूंढना है,क्यूँकि सुकून मिलने के बाद ही हम जीवन में उम्दा कार्यों,उम्दा व्यवहार की मिसाल बन सकते हैं। इस धरती पर जन्म लिया है तो ऐसा कुछ करके जाएँ,जो लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत साबित हो। याद रहे कि,ध्येय जितना ऊंचा होगा,उतने ही हम दुखी होंगे।
इस सृष्टि में मुख्यत: दो प्रकार के लोग मिलते हैं। पहले प्रकार के लोग दृढ़,मन के पक्के,शांत,प्रकृति के आगे समर्पित होने वाले,कल्पना-शक्ति के फेर में न पड़ने वाले,किंतु अच्छे,सज्जन,दयालु व मधुर स्वभाव के होते हैं। यह सृष्टि ऐसे ही लोगों के लिए है। ये लोग सुखी होने के लिए ही जन्म लेते हैं। इसके विपरीत दूसरे प्रकार के लोग अत्यंत संवेदनशील स्वभाव के,कल्पना-प्रधान होते हैं। इनकी भावना अत्यंत तीव्र होती है। इस तरह के लोग एक पल में ही ऊंची उड़ान भरते हैं,तो दूसरे ही पल एकदम जमीन पर होते हैं। ऐसे लोगों के भाग्य में सुख नहीं होता है। कह सकते हैं कि ये दूसरे प्रकार के लोग ही आत्महत्या करते हैं।
बहुत यथार्थवादी लोगों से आत्महत्या का विचार बहुत दूर रहता है। आत्महत्या की प्राथमिक शर्त है कल्पनाशीलता,कल्पनाशीलता का अभाव, सकारात्मकता,सकारात्मकता का आभाव।
आज की पीढ़ी बहुत कम समय में सफलता पाने की चाह रखती है,तथा उसे हासिल करने के लिए छोटे रास्ते का चयन करती है, जो बहुत ही ख़तरनाक साबित होता है। सफलता तो मिलती नहीं,उलटे दर्द,पीड़ा,हार की भावनाओं के बवंडर में खुद को घसीट लेते हैं,और जब तक उन्हें इस बात का होश आता है तब तक बहुत देर हो गई होती है
जीवन में जो हमारी मजबूरी होती है,उसे ही मजबूती अगर बना दें,जो हमारी निर्बलता है उसे ही हम हमारी शक्ति बनाएं..तो हम कभी जिंदगी से हारेंगे नहीं..। सुख़ का आनंद तभी महसूस होगा, जब दु:ख से गुजरेंगे,एवं जब हम सुख और दु:ख समान भाव से स्वीकार करेंगे,तभी हमें सुकून हासिल होता है-
जीवन तो बहती धारा है,
सुख,दु:ख दो किनारों बीच
बहती अमृतधारा है।

मुस्कुराहट लब्ज पर धर के
गम को हराना है,
आँसू गिरे कभी नैनों से
आँचल का सहारा है।

भूले जो भूल न पाए
अक्सर यही याद रखना है,
बेदर्दी के साए में पल के
दर्द को आज़माना है।

मुठीभर रेत फिसलेगी
समय की गति सरकेगी,
दर्द के नीले घावों से भी
एक दिन मुक्ति मिलेगी।

पीर को ही पिघला के
वश में कर मात देना है।
समय से पहले तन मन से,
कभी न हार जाना है…॥

परिचय-अल्पा मेहता का जन्म स्थल राजकोट (गुजरात)है। वर्तमान में राजकोट में ही बसेरा है। इनकी शिक्षा बी.कॉम. है। लेखन में ‘एक एहसास’ उपनाम से पहचान रखने वाली श्रीमती मेहता की लेखन प्रवृत्ति काव्य,वार्ता व आलेख है। आपकी किताब अल्पा ‘एहसास’ प्रकाशित हो चुकी है,तो कई रचना दैनिक अख़बार एवं पत्रिकाओं सहित अंतरजाल पर भी हैं। वर्ल्ड बुक ऑफ़ टेलेंट रिकॉर्ड सहित मोस्ट संवेदनशील कवियित्री,गोल्ड स्टार बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड एवं इंडि जीनियस वर्ल्ड रिकॉर्ड आदि सम्मान आपकी उपलब्धि हैं। आपको गायन का शौक है।

Leave a Reply