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मैं जो सबकी माँ हूँ…

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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माँ सारदा देवी जी को प्रणाम एवं श्रद्धाञ्जली अर्पण।
मैं माँ जो हूँ! माँ अगर सन्तान की देखभाल नहीं करेगी तो कौन करेगी! कोई अगर माँ कहकर आ खड़ा हो तो मैं उसे लौटा नहीं सकती। पृथ्वी के समान सहनशीलता होनी चाहिए। पृथ्वी पर कितने प्रकार के अत्याचार हो रहे हैं,लेकिन वह चुपचाप सहती जा रही है। कभी किसी का दोष नहीं देखना, कभी किसी की निन्दा नहीं करना,शान्ति आपसे-आप आ आएगी।
ऐसी ही है जगत के किए माँ की शिक्षाl केवल बहुत लिखाई-पढ़ाई करने से ही निपुण सांगठनिक शक्ति एवं दार्शनिक विचार धाराओं को प्राप्त किया जा सकता है,यह एक भ्रान्ति धारणा है,जिसके अकाट्य प्रमाण मिलते हैं ठाकुर रामकृष्ण परमहंस देव जी एवं उनके सहधर्मिनी श्रीश्री माँ सारदा देवीजी के जीवनियों को अध्ययन करने से! अगर,सिर्फ़ अन्तरात्मा को जागृत करते हुए दूसरों के सुख-दु:ख को एकात्म होकर विशुद्ध चित्त से अनुभव किया जा सके तो,आत्मदर्शन के साथ-साथ दर्शन शास्त्रों का अतिनिगुढ़ तथ्य एकाएक हृदय में उदित हो सकता है,जिसके लिए कोई पन्डित या विद्यालय से अध्ययन कर ज्ञानार्जन करने की जरुरत नहीं होती है। समदर्शन एवं सहानुभूति से स्वतः ही यह बोध हृदय में उदित हो जाता है। दूसरों के कष्ट में स्वयं का मन व्याथित हो जाता है,फिर इसी अनुरूप दूसरों के आनंद में स्वयं का दिल आनंद सागर में रम जाता है,तो यही संबंध हैं। हृदय में दूरदृष्टि जागने के साथ-साथ सांगठनिक क्षमताओं की वृद्धि होती है। जगकल्याण के लिए ठाकुर श्रीरामकृष्ण परमहंस देव जी के सहलीला धर्मिनी सारदा देवी भी इस कर्म काण्ड से व्यतिक्रमित न होकर मातृस्नेह की सुधामृत धारा से जगत संसार को सिंचित करती रहीं। वे आज जगत में मातृरूप में पूजिता हैं,सबकी माँ हैं,सचमुच अभयदायिनी स्नेहमयी माँ हैं!
एक तरफ जगत जननी रक्षाकर्ती माँ दुर्गा, दूसरी ओर लोकशिक्षा प्रदायिनी ज्ञानदायिनी माँ सरस्वती हैं! अपरिसीमित सांगठनिक शक्ति-मातृस्नेह में ही विद्यमान हो सकती है, जिसका उज्वल दृष्टान्त माँ सारदा देवी हैं। तत्कालीन कुसंस्कारमय अर्धजागृत समाज में मानविकता के बोध को जागृत करते हुए जनकल्याण व सामाजिक उन्नयन व जीव में समदर्शिता के साथ दया के भाव के विकास हेतु मानव प्रेममय भातृत्व बोध को संगठित कर विश्व में स्थाई शान्ति संस्थापन कराने के लिए साक्षात श्रीश्री चंडी देवी की अंशरुपा माँ सारदा देवी का अवतरण जग में हुआ है। रामकृष्ण परमहंस देव जी के ब्रह्मलीन होने का बाद माँ सारदा देवी जी ने लोगों को उत्साहित कर शिक्षा देते हुए प्रेरित किया और मानव कल्याण में स्वयं को सम्पूर्ण उत्सर्ग कर दिया,जिसके प्रतिफल में आज विश्व को स्वामी विवेकानन्द जैसा महान व्यक्तित्व मिला है।
सर्वदा सन्तानों को अभय देकर माँ कहती थी-‘मैं सचमुच की माँ हूँ,सिर्फ़ गुरुपत्नी नहीं,बनाई हुई माँ नहीं,कहने की माँ नहीं,सचमुच की माँ हूँ। भय की बात क्या है बेटा,सर्वदा जानना कि ठाकुर तुम्हारे पीछे ही है। मैं हूँ, मुझ माँ के रहते तुम्हे कैसा भय ?
मैं सत की भी माँ हूँ,असत की भी माँ हूँ। मैं जो माँ हूँ…।’
‘प्रकृतिम परमामभयां वरदाम,नवरूपधराम जनतापहराम।
शरणागत-सेवकतोषकरीम,प्रणमामि पराम जननीम जगताम॥’
अर्थात,परम प्रकृति वह अभया एवं वरदा नरदेह में अवतिर्णा होकर जीवदु:ख हारिणी एवं शरणागत सेवकों की आनंद विधायिनी,वही सर्वाराध्या जग जननी को प्रणाम।
अग्रहायण माह की कृष्णा सप्तमी तिथि को पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के जयरामबाटी ग्राम में स्नेहमयी माँ सारदामणि देवी जी का आविर्भाव हुआ था। माँ के श्री चरणों में साष्टांग प्रणाम।

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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