कठिन डगर

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************************** (रचना शिल्प:ताटंक छंद १६/१४) कठिन डगर है इस जीवन की,दु:ख में सुख को पाना है।पार तभी होगा भवसागर,हरदम हँसते जाना है॥ कभी अँधेरा कभी उजाला,धूप छाँव तो होता है।कोई हँसता है इस जग में,और कभी वो रोता है॥रखो हौंसला मेरे साथी,दुनिया को दिखलाना है।कठिन डगर है… हार नहीं जाना है … Read more

पिया मिलन

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************************** (रचना शिल्प:१६/१४) पिया मिलन को चली बावरी,कंटक से परिपूर्ण डगर।आँखों में वो स्वप्न सँजोए,चली गाँव से आज नगर॥ अरमानों की डोली बैठी,आशाओं के सावन में।नयी नवेली फूल कली वो,खिलती है मुस्कावन में॥प्रेम अगन में रही धधकती,प्यासी उनकी देख नजर।पिया मिलन को चली…………………। इठलाती बलखाती हँसती,हर्ष हृदय में भरती है।पावन बेला … Read more

मन वाणी भावेश हो

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************************** निर्मोही बनना नहीं,होय सरल व्यवहार।मिले तभी सम्मान है,अपना सब संसारll विद्रोही जो देश के,होते हैं गद्दार।ऐसे मानव को सदा,मिलती है फटकारll आरोही क्रम हो सदा,बने प्रगति की राह।पूरी होती फिर सभी,सोची जो भी चाहll स्नेह सभी से कीजिये,बैर भाव को त्याग।भाई चारा मन बसे,हो सबसे अनुरागll मन वाणी भावेश हो,रखना … Read more

महाराणा प्रताप:मानवता रक्षक

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ****************************************************************** ‘महाराणा प्रताप और शौर्य’ स्पर्धा विशेष………. माटी राजस्थान की,कुंभलगढ़ था स्थान। पिता उदयसिंह गेह में,जन्में वीर महान॥ जयवंता ममतामयी,माता की संतान। वीर पराक्रम के धनी,स्वाभिमान इंसान॥ मुगलों की आधीनता,उसको आय न रास। साहस शौर्य प्रधानता,स्वाभिमान थे पास॥ ‘कीका’ सम्बोधित करे,बचपन का था नाम। कुँवर वीर मेवाड़ के,अतुलित बल … Read more

सम्मान

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** माँ तेरे चरणों में पाया, अक्षय धन सम्मान है। तुझसे ही ये बेटा तेरा, तुझसे आज जहान हैll धरती की खातिर ही मैंने, अपना सब कुछ वार दिया। मरते दम तक तन को अपना, न्योछावर हर बार किया॥ मातृ भूमि की लाज बचाने, में अपनी ही शान है। … Read more

भीगी पलकें

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** (रचनाशिल्प-१६/१६) भीगी पलकें सुना रही है, एक अनकही मौन कहानी। आँखों में शबनम की बूँदें, लगती प्यारी देख सुहानीll सपनों का अम्बार लगा है, चैन नहीं मिलता है इनको। खोई रहती हैं यादों में, हृदय बसाकर रखती जिनकोll अश्क सँजोए रखती हरदम, पिय की सुन्दर प्रेम निशानी। आँखों … Read more

ग्रीष्म ऋतु

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** तेज धूप की अद्भुत माया। सूर्य आग गोला बरसाया॥ जीव जन्तु सब व्याकुल होते। नीर बिना मानव हैं रोते॥ नदी ताल सब सूख रहे हैं। देख धरा तप पवन बहे हैं॥ वन उपवन पतझड़ के मारे। सूने-सूने जंगल सारे॥ आसमान पर बादल छाते। नहीं मेघ जल मृदु बरसाते।। … Read more

कोयल कूके

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** कोयल कूके जब अमुवा पर, मन भौंरा इठलाता है। पिया मिलन की मधुरिम बेला, राग प्रीत के गाता है॥ अमराई की सुन्दर छाया, जहाँ खेल हमने खेला। रंग बसन्ती पुरवाई में, खुशियों का लगता मेला॥ वही सुहाना मौसम अब है, याद बहुत अब आता है। कोयल कूके जब … Read more

गर्मी की तपन

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** देखो गर्मी की तपन,छायी है चहुँओर। तड़प रहे सब जीव हैं,मचा हुआ है शोर॥ तपती धरती आसमां,कलरव नहीं विहंग। नीर बूँद पाने सभी,हो जाते हैं तंग॥ नदी झील तालाब भी,सूख रहे हैं आज। नीर बिना क्या जिंदगी,होय नहीं कुछ काज॥ व्याकुल मन लगता नहीं,किसी काम में ध्यान। ताप … Read more