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मन वाणी भावेश हो

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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निर्मोही बनना नहीं,होय सरल व्यवहार।
मिले तभी सम्मान है,अपना सब संसारll

विद्रोही जो देश के,होते हैं गद्दार।
ऐसे मानव को सदा,मिलती है फटकारll

आरोही क्रम हो सदा,बने प्रगति की राह।
पूरी होती फिर सभी,सोची जो भी चाहll

स्नेह सभी से कीजिये,बैर भाव को त्याग।
भाई चारा मन बसे,हो सबसे अनुरागll

मन वाणी भावेश हो,रखना शुद्ध विचार।
मिले सफलता आप ही,सबसे सद् व्यवहारll

काम सफल तब ही बने,दूर रहे जब क्लेश।
सकल मनोरथ पूर्ण जब,मन में नहिं आवेशll

मन से सब भय दूर हो,कोई रहे न शेष।
आगे-आगे बढ़ चलो,बनते काम विशेषll

चातक प्यासा होय तब,स्वाति बूँद की आस।
जब बरसे बरसात में,तभी बुझे है प्यासll

मैं पातक भगवान जी,देना मुझको तार।
विनय करूँ मैं द्वार पर,मेरे पालनहारll

शत्रु बड़ा घातक हुआ,किया पीठ पर वार।
जिसको समझे मित्र हम,वही किया संहारll

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