जीतेगा मानव

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ साहित्यिक गतिविधियाँ,सुन्दर काज। इससे कुसुमित होता,रहा समाज॥ सबके हित की बातें,यहाँ प्रधान। रचनाकारों का है,कार्य महान॥ तुलसी दल के जैसे,सब गुणवान। छोटे और बड़े सब,एक समान॥ सम्मानित सर्जक सब,हैं प्रणम्य। इनके कारण धरती,बनी सुरम्य॥ गीतों में जीवन के,बजे सितार। धरती पर आलोड़ित,होता प्यार॥ दु:ख के दिन में औषधि,सद्साहित्य। हर … Read more

नहीं घुसपैठियों को माफ करना

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ बिखरकर फूल बागों के झड़ेंगे, अकारण लोग आपस में लड़ेंगे। अगर कुछ सख़्त हो कानून मित्रों- करेंगे जो उपद्रव वो सड़ेंगे। न भारत बन्द ऐसा हो कहीं पर, करे मत चोट कोई भी यकीं पर। सभी हैं देशवासी हिन्द के तो- बहे मत खून भारत की जमीं पर। लड़ाती … Read more

वफ़ा का फ़साना

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ मुझे भी सुनाना, वफ़ा का फ़साना। न भूलूँ कभी मैं, न मुझको भुलाना। हुआ हूँ मैं तेरी, नज़र का निशाना। चलेगा न अब वो, तुम्हारा बहाना। मुहब्बत का दुश्मन, है सारा ज़माना। यकीनन तेरा मैं, तू मेरा दिवाना। न मायूस होकर, तू आँसू बहाना । सुकूं दे रहा है, … Read more

हिन्दी

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ हिंदी  दिवस स्पर्धा विशेष……………….. निज भाषा-उत्थान में,भाषाई पहचान में, गाँधी के अभियान में,हिन्दी मचल रही। हिन्दी की जयकार है,हिन्दी ही मेरा प्यार है, हिन्दी ही रसधार है,हिन्दी सफल रही॥ हिन्दी भाषा के नाम पर,बातें हों अंजाम पर, लेखनी के काम पर,हिन्दी सबल रही। भनई कैलाश आज,जागे हैं हिन्दी समाज, … Read more

निभाने चला हूँ मैं

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ पत्थर पे आज दूब जमाने चला हूँ मैं, मुमकिन यहाँ है कुछ भी तो गाने चला हूँ मैं। जो चीज दूर थी वो निकट आ गयी है अब, इक्कीसवीं सदी से निभाने चला हूँ मैं। तालीम की न फिक्र जहाँ है समाज को, उस गाँव में खुशी से पढ़ाने … Read more

तेरे बगैर जीने की चाहत कभी न की

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ (रचनाशिल्प: २२१२ १२१२ २२१२ १२) तेरे बगैर जीने की चाहत कभी न की, मैंने यहाँ कभी किसी से आशिकी न की। मुझको पसंद है वही अब आपकी पसंद, सच मानिए तो मैंने भी ग़लती बड़ी न की। आएँ हुजूर आपका स्वागत है हर घड़ी, उस बार आपसे तो मैंने … Read more

बताओ,अब किधर जाऊँ मैं

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ बताओ तुम्हीं अब किधर जाऊँ मैं, चलूँ साथ मंदिर कि घर जाऊँ मैं। गुलाबी हँसी के महाजाल में, कहीं टूटकर ना बिखर जाऊँ मैं। कभी तेरे घर को भी देखूँगा ही, तुम्हारे शहर को अगर जाऊँ मैं। नज़र फेर लेना नहीं तुम कभी, अगर सामने से गुज़र जाऊँ मैं। … Read more

गाँव मनोरम

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ गाँव मनोरम दृश्य लिये नित, स्वच्छ हवा-जल पूरित होता। दूध,दही,मछली नित माखन, गेह अनाज विभूषित होता। खेत-पथार सुशोभित गामक, बात-विचार न दूषित होता। बाग-बगान हँसे निशि-वासर ग्राम-प्रधान सुपूजित होता। पश्चिम में सरिता नद-निर्झर, उत्तर में मधु वृक्ष लगायो। दक्षिण में कृषि योग्य धरा पर, धान,गहूम,चना उपजायो। पोखर एक बड़ा … Read more

सँभलना है अगर

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ विश्व धरा दिवस स्पर्धा विशेष…………… अब दरख़्तों के लिए सोचें सँभलना है अगर, पेड़ की रक्षा करें खुशहाल रहना है अगर। आम,पीपल,नीम,तुलसी,बेल,बरगद के लिए हों सजग सारा ज़माना दूर चलना है अगर। पेड़-पौधों पर टिकी है ज़िन्दगी संसार की, काटिये इनको नहीं आबाद रहना है अगर। साग-सब्जी,फूल,फसलों के बिना … Read more