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हिन्दी

कैलाश झा ‘किंकर’
खगड़िया (बिहार)
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हिंदी  दिवस स्पर्धा विशेष………………..

निज भाषा-उत्थान में,भाषाई पहचान में,
गाँधी के अभियान में,हिन्दी मचल रही।
हिन्दी की जयकार है,हिन्दी ही मेरा प्यार है,
हिन्दी ही रसधार है,हिन्दी सफल रही॥
हिन्दी भाषा के नाम पर,बातें हों अंजाम पर,
लेखनी के काम पर,हिन्दी सबल रही।
भनई कैलाश आज,जागे हैं हिन्दी समाज,
हिन्दी में हो राज-काज,हिन्दी बदल रही॥

हिन्दी में ही लिखना पढ़ना,हिन्दी में ही बातें करना,
हिन्दी-हिन्दी जपते रहना,हमारा ही काम है।
हिन्दी में उदगार होगा,हिन्दी का संसार होगा,
हिन्दी से उद्धार होगा,हिन्दी भाषा आम है॥
हिन्दी का विकास करें,हिन्दी पर ही आस धरें,
हिन्दी में उल्लास भरें,हिन्दी चारों धाम है।
हिन्दी है हिन्दुस्तान में,हिन्दी है पाकिस्तान में,
हिन्दी पूरे जहान में,हिन्दी का ही नाम है॥

हिन्दी भाषा का उत्थान,झूमे सारा हिन्दुस्तान,
होगा भाषा का सम्मान,हिन्दी रसखान है।
तत्सम से तदभव से,देशज,विदेशज से,
हिन्दी समृद्ध सतत,चढ़ती सोपान है॥
खेतों की खलिहानों की,भोले भाले किसानों की,
पढ़े-लिखे विद्वानों की,हिन्दी ही जुबान है।
पीढ़ियों में हिन्दी-ज्ञान,वर्णमाला पहचान,
गुरूजी दे दें जो ध्यान,हिन्दी वरदान है॥

परिचय-कैलाश झा का साहित्यिक उपनाम-किंकर है। जन्म १२ जनवरी १९६२ को पर्रा बेगूसराय(बिहार) में हुआ है। पैतृक गाँव-हरिपुर(खगड़िया) निवासी श्री झा वर्तमान में जिला खगड़िया(बिहार)में बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,अंगिका, मैथिली का है। आपकी शिक्षा-एम.ए. तथा एल.एल.बी. है। कार्यक्षेत्र-प्रधानाध्यापक (खगड़िया)का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप खगड़िया में साहित्यिक संस्था के संयोजक और मंच के महासचिव हैं। साथ ही एक पत्रिका के सम्पादक भी हैं। इनकी लेखन विधा-गीत,ग़जल,लेख ,आलेख,कथा,लघुकथा,संस्मरण,समीक्षा एवं डायरी आदि है। प्रकाशित पुस्तकों में-‘हिन्दी कविता संग्रह-संदेश, दरकती जमीन,चलो पाठशाला,तीनों भुवन की स्वामिनी,कोई-कोई औरत और ईमान बचाए रखते हैं’ के अलावा  अंगिका संग्रह-‘जत्ते चलै चलैने जा,ओकरा कोय सनकैने छै,जानै जौ कि जानै जाता’ सहित ग़ज़ल संग्रह-‘हम नदी की धार में, देखकर हैरान हैं सब और मुझको अपना बना के लूटेगा’ आदि हैं। शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हैं। आकाशवाणी भागलपुर और दूरदर्शन पटना से रचनाएँ प्रसारित और कई भाषाओं में अनुवादित भी हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको बिहार,उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं दिल्ली आदि की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। किंकर की विशेष उपलब्धि-मंत्रिमंडल सचिवालय (हिन्दी विभाग)बिहार सरकार द्वारा ग़ज़ल संग्रह-‘देखकर हैरान हैं सब’ को पांडुलिपि प्रकाशन अनुदान मिलना है। लेखनी का उद्देश्य-‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के भाव से भारतीय छंदों के प्रचार-प्रसार हेतु लेखन,प्रकाशन और आयोजन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’,महादेवी वर्मा, शिवपूजन सहाय,जानकी वल्लभ शास्त्री,सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, फणीश्वरनाथ रेणु और प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज-पूनम कुमारी है। विशेषज्ञता -हँसी-मजाक पसंद होने से हास्य-व्यंग्य की ओर शुरू से झुकाव है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘स्वाधीनता की रोशनी को गाँव-घर तक ले चलें,
गुमनामियों में जी रहे अहले-हुनर तक ले चलें।
जब काव्य-पुष्प खिल जाएगा,
सबको जवाब मिल जाएगा।’

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