Total Views :180

You are currently viewing नहीं घुसपैठियों को माफ करना

नहीं घुसपैठियों को माफ करना

कैलाश झा ‘किंकर’
खगड़िया (बिहार)
************************************************************************************
बिखरकर फूल बागों के झड़ेंगे,
अकारण लोग आपस में लड़ेंगे।
अगर कुछ सख़्त हो कानून मित्रों-
करेंगे जो उपद्रव वो सड़ेंगे।

न भारत बन्द ऐसा हो कहीं पर,
करे मत चोट कोई भी यकीं पर।
सभी हैं देशवासी हिन्द के तो-
बहे मत खून भारत की जमीं पर।

लड़ाती कुर्सियाँ अफ़वाह लेकर,
पुन: कुर्सी मिले यह चाह लेकर।
बिना समझे बिना जाने हक़ीक़त-
मरो मत तुम किसी की आह लेकर।

अगर इन्सान हो इन्साफ करना,
बँटा था देश क्योंकर साफ करना।
सुरक्षित हों सभी सीमा हमारी-
नहीं घुसपैठियों को माफ करना।

न हिन्दुस्तान जैसा देश कोई,
नहीं पालो कभी आवेश कोईl
गुज़र कर लो यहाँ सुविधा मुकम्मल-
नहीं बहका सके दरवेश कोई।

परिचय-कैलाश झा का साहित्यिक उपनाम-किंकर है। जन्म १२ जनवरी १९६२ को पर्रा बेगूसराय(बिहार) में हुआ है। पैतृक गाँव-हरिपुर(खगड़िया) निवासी श्री झा वर्तमान में जिला खगड़िया(बिहार)में बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,अंगिका, मैथिली का है। आपकी शिक्षा-एम.ए. तथा एल.एल.बी. है। कार्यक्षेत्र-प्रधानाध्यापक (खगड़िया)का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप खगड़िया में साहित्यिक संस्था के संयोजक और मंच के महासचिव हैं। साथ ही एक पत्रिका के सम्पादक भी हैं। इनकी लेखन विधा-गीत,ग़जल,लेख ,आलेख,कथा,लघुकथा,संस्मरण,समीक्षा एवं डायरी आदि है। प्रकाशित पुस्तकों में-‘हिन्दी कविता संग्रह-संदेश, दरकती जमीन,चलो पाठशाला,तीनों भुवन की स्वामिनी,कोई-कोई औरत और ईमान बचाए रखते हैं’ के अलावा  अंगिका संग्रह-‘जत्ते चलै चलैने जा,ओकरा कोय सनकैने छै,जानै जौ कि जानै जाता’ सहित ग़ज़ल संग्रह-‘हम नदी की धार में, देखकर हैरान हैं सब और मुझको अपना बना के लूटेगा’ आदि हैं। शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हैं। आकाशवाणी भागलपुर और दूरदर्शन पटना से रचनाएँ प्रसारित और कई भाषाओं में अनुवादित भी हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको बिहार,उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं दिल्ली आदि की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। किंकर की विशेष उपलब्धि-मंत्रिमंडल सचिवालय (हिन्दी विभाग)बिहार सरकार द्वारा ग़ज़ल संग्रह-‘देखकर हैरान हैं सब’ को पांडुलिपि प्रकाशन अनुदान मिलना है। लेखनी का उद्देश्य-‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के भाव से भारतीय छंदों के प्रचार-प्रसार हेतु लेखन,प्रकाशन और आयोजन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’,महादेवी वर्मा, शिवपूजन सहाय,जानकी वल्लभ शास्त्री,सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, फणीश्वरनाथ रेणु और प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज-पूनम कुमारी है। विशेषज्ञता -हँसी-मजाक पसंद होने से हास्य-व्यंग्य की ओर शुरू से झुकाव है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘स्वाधीनता की रोशनी को गाँव-घर तक ले चलें,
गुमनामियों में जी रहे अहले-हुनर तक ले चलें।
जब काव्य-पुष्प खिल जाएगा,
सबको जवाब मिल जाएगा।’

Leave a Reply