मन बंजारा…

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** मन बंजारा तन बंजारा,ये जीवन बंजारा है, चार दिनों की ज़िन्दगी,बस इतना गुजारा है। ये मन भी कहाँ इक पल,चैन से सोता है, ख़्वाब सजाए आँखों में,चैन ये खोता है। चाहत के जुनूँ में मन,बस फिरता मारा है, मन बंजारा तन बंजारा,जीवन बंजारा है॥ ये तन भी कहाँ हरदम,साथ … Read more

निःशब्द हूँ `दिशा`

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** निःशब्द हूँ `दिशा` क्या कहूँ ? यह भारत है जहाँ आतंकवादियों को भी, बचाने को वकील खड़ा हो जाता है फिर तो तुम्हारे गुनहगार महज दुष्कर्मी हैं! उन दुष्टों के लिए वकीलों की क्या कमी होगी ? कोर्ट में बार-बार तुम्हारे नाम पर झूठी जिरह करेंगे, हर बार अपनी … Read more

शहर

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** घने कोहरे में लिपटा, धुँआ-धुँआ सा है शहर। फिजां में धीरे घुलता, मीठा-मीठा-सा है जहर। किसी गरीब की फटी, झोली-सा है शहर। उसके शरीर पर लिपटी, मैली कमीज सा है शहर। शर्म बस थोड़ा ढँकती, उघड़ी समीज़-सा है शहर। पेट-पीठ से सटी, भूखी अंतड़ी-सा है शहर, होंठ पर पड़ी … Read more

संहार करेगी

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** हैदराबाद घटना-विशेष रचना………….. कुचल डालो सर उसका,जिसने भी दुष्कर्म किया, मसल डालो धड़ उसका,जिसने भी यह कर्म किया। नहीं क्षमा ना दो संरक्षण,ना मज़हब का दो आरक्षण, हर दुष्कर्मी को दो फाँसी,जो करते जिस्मों का भक्षण। काट डालो उन पँजों को,जिसने अस्मत को तार किया, मानव तन में छुपे … Read more

मुहब्बत

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** (रचनाशिल्प:१२२ १२२ १२२ १२२)  मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत हमारी, सलामत रहे प्यार चाहत हमारी। नहीं ख़्वाब कोई नहीं चाह कोई, नहीं कोई तुझसे शिकायत हमारी। नहीं फूल गुलशन,नहीं चाँद-तारे, नहीं झूठ कहने की आदत हमारी। लिखेगा जमाना फ़साना हमारा, बनेगी कहानी ये उल्फ़त हमारी। प्रियम की मुहब्बत तुम्हारी जवानी, दिलों … Read more

सुर्ख़ियाँ बनने लगीं

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* दूरियाँ घटने लगीं हैं, साज़िशें बढ़ने लगीं हैं। डालनी हैं बेड़ियाँ फिर, बंदिशें हटने लगीं हैं। आसमाँ खुश हो गया अब, बदलियाँ छँटने लगी हैं। बोलना होगा मुझे ही, चुप्पियाँ कहने लगीं हैं। कह दिया जो मैंने सच तो, त्योरियां चढ़ने लगीं हैं। आ रहा क़ातिल इधर ही, तालियाँ बजने लगीं … Read more

सिंदूर

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** चुटकी भर सिंदूर लगा, सजनी सुंदर सजती है। सोलह श्रंगार होता पूरा, माथे जो लाली रचती है। बिन इसके सुहाग अधूरा, हर नारी अधूरी लगती है। चटक सिन्दूरी सूरज आभा, सजा के औरत फबती है। चुटकी भर सिंदूर की कीमत, सुहागन सारी समझती है। तभी सुहाग बचाने को नारी, … Read more

बचपन

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष……….. हँसी लड़कपन की हसीन, और वो मीठे-मीठे पल। याद है बचपन के दिन, वो गुजरे हुए सारे कलll न चेहरे पे थी चिंता कोई, न माथे पे थी कोई शिकन। हँसी-खुशी गुजरते थे, बचपन के हर दिन-हरपलll माँ की गोदी में होती, तब सारी … Read more

हम भीड़ से बचते रहे

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* (रचनाशिल्प:२२१२ २२१२) उनसे नहीं रिश्ते रहे, चुपचाप बस घुटते रहेl दुश्वारियाँ तो थीं मगर, बिंदास हम बढ़ते रहेl बेफ़िक्र मुझको देखकर, बाजू में सब चिढ़ते रहेl पत्थर लिये थे हाथ सब, हम भीड़ से बचते रहेl क्यों दुश्मनों को दोष दें, जब दोस्त ही लड़ते रहेl हँसने को थे मजबूर हम, … Read more

सौगात

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** (रचनाशिल्प:१२२ १२२ १२२ १२२) नज़र की नज़र से मुलाकात होगी, दिलों की दिलों से तभी बात होगी। कभी जो नज़र ये हमारी मिलेगी, यकीनन सितारों भरी रात होगी। मिलेगी नज़र जब हमारी तुम्हारी, सुहानी सहर और जवां रात होगी। चलेंगे तुम्हें साथ लेकर सफ़र जो, हमारी डगर फूल बरसात … Read more