मन बंजारा…
पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** मन बंजारा तन बंजारा,ये जीवन बंजारा है, चार दिनों की ज़िन्दगी,बस इतना गुजारा है। ये मन भी कहाँ इक पल,चैन से सोता है, ख़्वाब सजाए आँखों में,चैन ये खोता है। चाहत के जुनूँ में मन,बस फिरता मारा है, मन बंजारा तन बंजारा,जीवन बंजारा है॥ ये तन भी कहाँ हरदम,साथ … Read more