शाम
तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान) ************************************************* दूर क्षितिज पे, लगे यूँ ऐसे ढलती शाम का ढलता सूरज है अधीर, धरती से मिलने। आसमां की छटा निराली, कुछ उजली कुछ काली-काली, चारों ओर धुँधलका छाया, अब है रात पसरने वाली। ढूंढ रहे हैं पँछी भी देखो, अपना अपना रैन-बसेरा। जड़-चेतन सब थके-थके से, शाम हुई आराम चाहिए, … Read more