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भोर

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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धरती के
आँगन पर,
देखो भोर ने
फिर से
डेरा डालाl
आकाश की
गोदी से,
उतर कर
सूरज ने,
अंगड़ाई लीl
अलसायी-सी
रात ने देखो,
समेट लिया है
अपना बिस्तरl
पंछियों ने,
पर फैलाकर
आशाओं की,
भरी उड़ान
असीम,
आकाश की ओर।
चटक के कलियां,
बन गयी फूल
भोर का आगमन,
तम का गमनl
जीवन फिर
जीवन्त हुआ।
जड़-चेतन सभी
हुए जाग्रत,
हुआ तन-मन
आनंद विभोर,
जीवन चला…
गंतव्य की ओरll

परिचय-श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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