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मालूम नहीं,दौड़े जा रहे हैं लोग

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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(रचनाशिल्प:२१२ १२१ २१२ १२१)

कुत्ते की क़दर,आदमी बेक़दर देखा,
सबकी ख़बर,ख़ुद को बेख़बर देखा।

बेवफ़ा हवाओं ने अपना रुख़ बदला,
मौसम-ए-बहार में सूखा शज़र देखा।

मालूम नहीं कहाँ,दौड़े जा रहे हैं लोग,
बगैर मंजिल का हमने ये सफ़र देखा।

तेरे पत्थर से दिल में,मोहब्बत भर दी,
अपनी दुआओं का हमने असर देखा।

खो गया हूँ मैं,तेरी जलवानुमाई में,
देख कर तुझे फ़िर,इधर न उधर देखा।

डाल दी रुख़-ए रौशन पर ये नक़ाब,
हमने तो तुम्हें अभी,न जी भर देखा।

बेवज़ह बेकुसूर बेज़ुबान लोगों पर,
आतंकवाद का बरसता क़हर देखा।

फ़ुटपाथ पर ठिठुरता पड़ा मुफ़लिस,
न कोई घर भूखे-पेट,दर-बदर देखा।

मजदूर जब करता है मेहनत ‘प्रीत’
भरी सर्दी में पसीने से तर-बतर देखा॥

परिचय-श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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