गणतंत्र दिवस

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** पावन गाथा शौर्य का,कुर्बानी सत्नाम। आज़ादी माँ भारती,लोकतंत्र अभिराम॥ वर्षों की नित साधना,सहे ब्रिटानी घात। कोटि-कोटि बलिदान दे,पा स्वतंत्र सौगात॥ लुटीं अस्मिता इज़्ज़तें,ब्रिटानी अत्याचार। तन मन धन अर्पित वतन,पराधीन उद्धार॥ सही यातना कालिमा,मीसा त्रासद जेल। तहस-नहस संवेदना,दानवता का खेल॥ खाये डंडे गोलियाँ,शैतानी परतंत्र। जलियाँवाला त्रास भी,तभी मिला गणतंत्र॥ … Read more

अमर रहे गणतन्त्र हमारा…

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** गणतंत्र दिवस स्पर्धा विशेष……… अमर रहे गणतन्त्र हमारा, जन-गण-मन का नारा है। आसमान पर देख तिरंगा, विश्व गगन का तारा हैll सदियों से हम ठोकर खाएँ, मिली आज आजादी ये। चलो सहेजें अपनी धरती, अब मत हो बर्बादी येll वसुंधरा माँ की आँचल को, हमने आज सँवारा है। … Read more

तपती धरती

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** धरती तपती धूप से,कटते वन चहुँओर। नहीं किसी को सुध यहाँ,बनते हृदय कठोरll बनते हृदय कठोर,नहीं सुध कोई लेते। काटे वृक्ष अपार,इसे बंजर कर देतेll कहे `विनायक राज`,धरा सबके दु:ख हरती। वृक्ष लगाकर आज,बचा लो तपती धरतीll

सुभाष:भारत माँ का लाड़ला

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** सदा अथक संघर्ष ने,माँ भारत के त्राण। आत्मबल विश्वास दे,कर सुभाष निर्माणll भारत माँ का लाड़ला,महावीर सम पार्थ। मेधावी था अतिप्रखर,दानवीर परमार्थll मेरूदंड स्वाधीनता,महाक्रान्ति संघर्ष। कर तन मन अर्पण वतन,तज शासन उत्कर्षll बँधी गुलामी पाश में,भारत माँ अवसाद। देखी सुभाष जन यातना,गोरों का उन्मादll आ उबाल रग खून … Read more

दुनिया

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** अपने-अपने हैं सभी,अपनों से हो प्यार। दुनिया की इस भीड़ में,खो मत जाना यारll खो मत जाना यार,यहाँ धोखा ही पाते। जिसका खाते अन्न,उसी का हैं गुण गातेll कहे `विनायक राज`,देखना मत तुम सपने। स्वार्थ करे इंसान,नहीं हैं कोई अपनेll

मन मयूर स्वागत प्रिये!

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** फूलों सा कुसमित वदन,अधरामृत मुस्कान। चारुचन्द्र तनु चारुतम,हो कुदरत वरदान॥ मधुर प्रेम मन रंजिता,चाहत मिलन अपार। परिणीता वन्दित हृदय,बनूँ प्रीत रसधार॥ कमलनैन रतिभंगिमा,अन्तर्मन अभिसार। भ्रमर गुंज नित अर्चना,मनमादक श्रृंगार॥ चंचल मन मधुरिम हृदय,सुरभित भाष सुहास। मनोरमा हरिणी समा,मिलूँ हृदय अभिलास॥ पीन पयोधर शिखर सम,त्रिवली सरिता धार। लाल गाल … Read more

मकर संक्रान्ति,बिहू और पोंगल पर्व

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** पौष मास स्वागत करूँ,सूर्य करे धनु त्याग। मकर राशि पावन अतिथि,महापर्व अनुराग॥ प्रथम साल त्यौहार है,मकर संक्रान्ति नाज़। सदा चतुर्दश जनवरी,कभी पञ्चदश आज॥ लोहड़ी या बिहू कहीं,है पोंगल त्यौहार। कहीं तिल संक्रान्ति यह,दधि-चूड़ा आहार॥ शस्य श्यामला खेत का,नया फसल का स्वाद। चहुँदिश है फ़ैली खुशी,मिटा वैर अवसाद॥ रंग-बिरंगी … Read more

देश से बढ़कर कुछ नहीं

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** राजनीति प्रतिकूलता,देशविमुख फरमान। चाहे जितना यतन कर,सफल न हो अरमान॥ देश से बढ़ कर कुछ नहीं,समझो रे गद्दार। छोड़ो दंगा गुंडई,बनो वतन खु़द्दार॥ लोकतंत्र मतलब नहीं,तोड़ोगे तुम देश। गाओगे नापाक को,नहीं बचोगे शेष॥ कोसो तुम सरकार को,ये तेरा अधिकार। पर तोड़ो मत देश को,वरना हो धिक्कार॥ आज़ादी अभिव्यक्ति … Read more

ओस की बूँदें

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** धरती पर है ओस की,बूँदें देख हजार। मोती आभा हैं लिए,किरणों की बौछार॥ रात चाँदनी में दिखे,सुन्दरतम् मनुहार। दुग्ध धवल-सी ज्योत्सना,छाई छटा बहार॥ रातों में ठंडी हवा,बहती है पुरजोर। परिणित होते बर्फ में,देख ओस चहुँओर॥ देख चमकती है धरा,चन्द्र किरण के साथ। शीतलता अहसास भी,जब छूते हैं हाथ॥ … Read more

कुमकुम

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** कुमकुम रोली साथ में,सुन्दर लागे भाल। नारी की है साज ये, छम्मक छल्लो चाल॥ छम्मक छल्लो चाल,देखते मन को भाती। कुमकुम लाली माथ,नाज नखरा छलकाती॥ कहे ‘विनायक राज’,सजाना नारी को तुम। स्वर्ग परी-सी मान,लगे जब माथे कुमकुम॥