मन्द सुगन्ध महके

संदीप धीमान चमोली (उत्तराखंड)********************************** मन्द सुगन्ध,महके रात्रि गंध,खोल दे श्वांस जिसकी हो बंदहरसिंगार कहो,कहो परिजात,पुष्प विशिष्ट धरा मात्र है चंद। पड़ जाएं जो गल बन माला,सोलह श्रंगार पड़े आगे मंद,परिजात-सा ले आएं स्वर्ग धरा,नासा छिद्र खुल जाएं पड़े बंद। देव पुष्प देवों का प्यारा,इत्र-सा महका दे संसार जो साराऔषधीय गुणों से है भरपूर,धनवंतरि का वो सबसे … Read more

कुछ प्रेम जैसा मामला

संदीप धीमान चमोली (उत्तराखंड)********************************** कुछ प्रेम जैसा मामला हैतर्कों से कहां कोई सामना है,मस्तिष्क लाख संतुष्ट करोजब छिपी उर कोई कामना है। लाख तर्क दो समझाने कोपृथ्वी,सूर्य चक्कर लगाती है,मैं स्थिर तो पृथ्वी भी स्थिरमेरे दिल का तो यही मानना है। तुम दोगे दण्ड अगर मूर्खता पेमूर्खता तो तर्क का मामला है,पड़ जाऊंगा कदमों में तुम्हारेकौन … Read more

हमेशा नहीं रहने वाली

संदीप धीमान चमोली (उत्तराखंड)********************************** हमेशा नहीं रहने वालीये देह कमरा किराए का,आँसू भी तेरे खुद कहां-अपना ही कोई रुलाएगा। माटी की देह को मेरीख़ाक अपना ही मिलाएगा,चिंता करूं मैं किसकी यहां,जो मुझको ही आग लगाएगा! है ख़ुदा की रहमत हम परजो गहरी नींद सुलाएगा,मोजों की रवानी जन्नत के-ख्वाब हकीकत बनाएगा। दर्द दिए जो जमाने भर नेगर्त … Read more

सरल नहीं है कर्म

संदीप धीमान चमोली (उत्तराखंड)********************************** सरल नहीं है कर्म यहांगरल कर्म भाव है,धर्म की राह पर भी-धर्मराज पितृ न छाँव है। दोष पितृ मढ़े गएअपनों को ही मार कर,संग हरि थे वो सभी-उर लगे तब भी घाव हैं। राजपाट मिल गयाबचें न घर पाँव है,धर्म की विजय हुई-मातम कर्म भाव है। पराक्रम और कर्म सेजो थे वो … Read more

प्रकृति प्रेम

संदीप धीमान चमोली (उत्तराखंड)********************************** सौंधी-सौधी सी मिट्टी मेंसौंधा-सौंधा सा कल है,अंकुरित होती डालियों पे-आने वाला मीठा-सा फल है। हर्षित,उपवन-सा देख इन्हेंआज बहारों-सा मेरा मन है,बच्चों के जैसे थे कभी जो-आज यौवन में इनका तन है। पतझड़,सावन-भादो साउदास निराश बीती यादों-सा,अपने जैसा ही जरा देखो ना-बहारों-सा आज खिला यौवन है। प्रकृति की अपनी रीत प्रीत कीदेती शीतल … Read more

उर स्वर तरंग कैसे लाऊं…

संदीप धीमान चमोली (उत्तराखंड)********************************** बिखरुँ तो बिसर जाऊंया बिसर के बिखर जाऊं,इंद्रियां समेटूं मैं अपनीया इनमें ही सिमट जाऊं। खुद बिसर शिखर पाऊंया बिखर के निखर पाऊं,संकुचित होती उर ज्योतक्या इसी में लिपट जाऊं। निखर शिखर कैसे पाऊंबिसर बिखर कैसे जाऊं,इन्द्रियां शीतल करूं तापया अग्नि विराट भड़का। सजल स्वर कैसे पाऊंउर त्वरित तरंग कैसे पाऊं,मंद गति … Read more

मील का पत्थर,मंजिल नहीं

संदीप धीमान चमोली (उत्तराखंड)********************************** कोई शास्त्र सत्य नहीं है,पत्थर मील भी असत्य नहीं हैशास्त्र कहूं या पत्थर मील का-रखा सर जो,तो भ्रम वहीं है। शास्त्र,पत्थर एक कहीं है,इशारा उनका,ठहराव नहीं हैबढ़ो और आगे,और आगे-मील का पत्थर मंजिल नहीं है। हर समुदाय थाम कर बैठा,पत्थर मील सर रख कर बैठामंजिल पर किसी का ध्यान नहीं-मंजिल उसी को … Read more

आना-जाना तय

संदीप धीमान चमोली (उत्तराखंड)********************************** जिंदगी चार दिन की जाना तय है,दिन उजाला तो रात का आना तय है। जन्म से पहले जहां था मैं कभी,उस जहां में वापिस जाना तय है। जितना ज्यादा लगाव इस जहां से,उतना ही ज्यादा घबराना तय है। सत्य समझ जो जी लूँ मैं खुद में,भ्रम,देख सत्य को मिट जाना तय है। … Read more

ग़ज़ल के चलते-फिरते विश्वविद्यालय थे डॉ. दरवेश भारती

संदीप सृजनउज्जैन (मध्यप्रदेश) *************************************** श्रद्धांजलि:स्मृति शेष…… ‘जितना भुलाना चाहें भुलाया न जायेगा,दिल से किसी की याद का साया न जायेगा।’इस संजीदा अशआर को कहने वाले डॉ. दरवेश भारती जी ३ मई २०२१ को दुनिया को अलविदा कह गए,लेकिन जो काम हिंदी, उर्दू साहित्य के लिए वे कर गए,वह आने वाले कई सालों तक उनको ज़मीन पर … Read more

दीपावली पर पटाखे भारत की परम्परा नहीं

संदीप सृजनउज्जैन (मध्यप्रदेश) *************************************************** भारतीय संस्कृति उत्सव प्रधान है और उत्सव की प्राचीन परम्परा उल्लास और उच्चता से जुड़ी हुई है,जब जीवन में उल्लास हो और तन और मन की उच्चता हो वह समय उत्सव है। दीपोत्सव की परम्परा अनादि काल से भारतीय संस्कृति की अक्षुण्ण पहचान है,वैदिक काल हो या उत्तर वैदिक काल हो दीपावली … Read more