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मील का पत्थर,मंजिल नहीं

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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कोई शास्त्र सत्य नहीं है,
पत्थर मील भी असत्य नहीं है
शास्त्र कहूं या पत्थर मील का-
रखा सर जो,तो भ्रम वहीं है।

शास्त्र,पत्थर एक कहीं है,
इशारा उनका,ठहराव नहीं है
बढ़ो और आगे,और आगे-
मील का पत्थर मंजिल नहीं है।

हर समुदाय थाम कर बैठा,
पत्थर मील सर रख कर बैठा
मंजिल पर किसी का ध्यान नहीं-
मंजिल उसी को समझ कर बैठा।

कोई शास्त्र सत्य नहीं है,
सत्य को इशारा इंगित वही है
दर्शन है शास्त्र मार्ग प्रशस्ति का-
पकड़े जो उसको,गलत वहीं है।

पत्थर मील अंकित अंक कई हैं,
शास्त्र शब्दों में कहा अर्थ वहीं है,
शून्य पाओ जब तुम दोनों में-
मंजिल तुम्हारी भी वहीं कहीं है।

विश्व में प्रविष्ट एक है अग्नि,
रुप अनेक,पर एक है अग्नि
उर्जा भीतर,बाहर एक कहीं है-
शून्य या मंजिल अर्थ एक वहीं है।

अलग चेष्टा,अलग उपाय,
अलग भावार्थ,ऐनक कई हैं।
भिन्नता में कहीं शून्य छिपा है-
मंजिल अनाम,निशब्द मौन वहीं है॥

परिचय- संदीप धीमान का जन्म स्थान-हरिद्वार एवं जन्म तारीख १ मार्च १९७६ है। इनका साहित्यिक नाम ‘धीमान संदीप’ है। वर्तमान में जिला-चमोली (उत्तराखंड)स्थित जोशीमठ में बसे हुए हैं,जबकि स्थाई निवास हरिद्वार में है। भाषा ज्ञान हिन्दी एवं अंग्रेजी का है। उत्तराखंड निवासी श्री धीमान ने इंटरमीडिएट एवं डिप्लोमा इन फार्मेसी की शिक्षा प्राप्त की है। इनका कार्यक्षेत्र-स्वास्थ्य विभाग (उत्तराखंड)है। आप सामाजिक गतिविधि में मानव सेवा में सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता एवं ग़ज़ल है। आपकी रचनाएँ सांझा संग्रह सहित समाचार-पत्र में भी प्रकाशित हुई हैं। लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा व भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करना है। देश और हिन्दी भाषा के लिए विचार-‘सनातन संस्कृति और हिन्दी भाषा अतुलनीय है,जिसके माध्यम से हम अपने भाव अच्छे से प्रकट कर सकते हैं,क्योंकि हिंदी भाषा में उच्चारण का महत्व हृदय स्पर्शी है।

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