तुम्हारा शहर

तालिब मंसूरीदिल्ली **************************** काव्य संग्रह हम और तुम से तुम्हारा ही शहर है,और मुझे तुम ही अनजाने लगते हो। महफिल भी ये है तुम्हारी,तुम ही बेगाने से अब लगते हो।…

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