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जुल्फों में उलझ गया

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
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हवा में जब उड़-उड़ जाए,
ये ज़ुल्फ़ घनेरी मेरी।
उनका दिल इलू-इलू करे,
और राह तकें वो मेरी।

इन जुल्फों में उलझ गया है,
सुनो उनका दिल बेचारा।
धड़के वो उनके सीने में,
और नाम जपे वो हमारा।

जब भी नहा कर आती हूँ मैं,
इन ज़ुल्फ़ों से शबनम गिरती।
मचलें ना वो इधर-उधर कहीं,
तोलिये से उन्हें हूँ में कसती।

गालों पर जब ज़ुल्फ़ घनेरी,
चुपके से आ जाती हैं।
चूम कर गालों को मेरी,
हवा में वो उड़ जाती हैं।

जुल्फों को कसकर बाँधूँ मैं,
फिर भी माथे पर आ जाती हैं।
उड़-उड़ कर वो उनको यारों,
मौन निमन्त्रण दे जाती हैं।

इन ज़ुल्फ़ों के साए में ही,
मजनूं,महिवाल,शाहजहां पले।
हो गई मुहब्बत जग में अमर,
और नाम अमर करके वो चले॥

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम ‘उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है। आपकी लेखन विधा कविता,गीत, कहानी और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली भाषा में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में विविध विधा में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैL साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।

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