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मन को भाएगी मन-गुँजन

आरती सिंह ‘प्रियदर्शिनी’
गोरखपुर(उत्तरप्रदेश)
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प्रखर गूँज प्रकाशन के सानिध्य में प्रकाशित पुस्तक मन-गुँजन की रचनाकार रेनू त्यागी (हरियाणा) काफी समय से लेखन के क्षेत्र में अग्रसर हैं। इनके लेखन की खासियत यह है कि,बहुत ही कम शब्दों में अपनी भावनाएं कागज पर उड़ेल देती हैं। तभी तो वह कहती हैं-
मामूली सा सवाल थी मैं,और ढूंढने वाले ढूंढते रहे मगर जवाब किसी को नहीं मिला मेरा, गुम हो गई फिर मैं यहाँ गुमाँ हुआ बार बार ना जाने क्यों मुझे, बस यूं ही अहसास होता रहा तेरा।
इस काव्य संग्रह में उन्होंने आम जनजीवन को भी कुछ इस तरह से व्यक्त किया है कि,पाठक सहज भाव से उन तथ्यों में खो जाते हैं।
स्वप्नों के रथ पर बैठ इस धरती का चक्कर लगाना है, समापन हो जब इस धरती से अस्तित्व हमारा तो मृत्यु के हृदय में ठिकाना बनाना है, बाद उसके फिर से मिट्टी बन जाना है।
अल्हड़ उम्र की बातें शीर्षक कविता में वह स्त्री जीवन के यौवन अवस्था की मानसिक उथल-पुथल एवं हाव-भाव को चित्रित करती हैं। उनका यह चित्रण पाठकों को अवश्य ही युवावस्था की गलियों में मोड़ देगा। एक बानगी देखिए-
दर्पण देख शरमाई-सी सुबह को ओस के मोती जैसे गालों पर दमकते थे होंठों पर लगा गया मुस्कान कोई, किससे पूछती सब बातों से अनजान थीl
उनकी कुछ और भी कविताएं जैसे तेरी याद में,श्रृंगार तुम्हारे नाम का,कुछ यूं ही,कुछ रस्में-रवायतें इत्यादि में ऐसे ही मन का मनोहारी चित्रण है।
बिन मुस्कुराहट के लोग हमसे दूर हुए, ख्वाबों को हकीकत ना मिली,तो हम टूट से गए, अरमां हमारे जैसे यूँ ही बह से गएl
अरे इंसान कविता में वह बुजुर्गों के वर्तमान परिदृश्य पर चोट करते हुए कहती हैं-
मंदिर के बुतों से दुआ की उम्मीद क्या करते हो, कभी घर के बुजुर्गों के पाँव छूकर देख लोl
जीवन की कड़वी सच्चाई बयान करती है उनकी एक कविता हस्ती
पानी में उनका जीवन बीता, वो ही उन पर ठहर नहीं पाता है, तो ओरों की क्या हस्ती,देखो तो तभी उन पर चलने की मनाही होती है, न जाने कब कौन फिसल जाए,अपने प्राणों संग।
इस संग्रह में कविताओं के साथ-साथ कुछ क्षणिकाएं तथा हाईकू भी है जो आधुनिकता एवं सामाजिक व्यवस्था पर चोट करती हैं।
`प्रकृति बोले
अपना मुखड़ा तू
मूरख धो लेl

दिन-रात में
बदल जाते हैं यहाँ
पल कल मेंl`
अंततः भावना प्रधान रचना के शौकीन पाठकों के लिए

परिचय-आरती सिंह का साहित्यिक उपनाम-प्रियदर्शिनी हैL १५ फरवरी १९८१ को मुजफ्फरपुर में जन्मीं हैंL वर्तमान में गोरखपुर(उ.प्र.) में निवास है,तथा स्थाई पता भी यही हैL  आपको हिन्दी भाषा का ज्ञान हैL इनकी पूर्ण शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी) एवं रचनात्मक लेखन में डिप्लोमा हैL कार्यक्षेत्र-गृहिणी का हैL आरती सिंह की लेखन विधा-कहानी एवं निबंध हैL विविध प्रादेशिक-राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कलम को स्थान मिला हैL प्रियदर्शिनी को `आनलाईन कविजयी सम्मेलन` में पुरस्कार प्राप्त हुआ है तो कहानी प्रतियोगिता में कहानी `सुनहरे पल` तथा `अपनी सौतन` के लिए सांत्वना पुरस्कार सहित `फैन आफ द मंथ`,`कथा गौरव` तथा `काव्य रश्मि` का सम्मान भी पाया है। आप ब्लॉग पर भी अपनी भावना प्रदर्शित करती हैंL इनकी लेखनी का उद्देश्य-आत्मिक संतुष्टि एवं अपनी रचनाओं के माध्यम से महिलाओं का हौंसला बढ़ाना हैL आपके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैंL  

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