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भारत में ‘कोरोना’ की करुणा

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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‘कोरोना’ वायरस ने दुनिया में जैसा हड़कम्प मचाया है,वैसा मानव इतिहास में पहले कभी नहीं मचा। सवा सौ से ज्यादा देशों में यह फैल गया है। हजारों लोग मर रहे हैं और लाखों पीड़ित हो गए हैं। ऐसा क्यों हो रहा है ? क्योंकि,दुनिया बहुत छोटी हो गई है। पूरी वसुधा कुटुम्ब बन गई है। कुछ ही घंटों में आप दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में पहुंच जाते हैं। चीन में पैदा हुआ यह वायरस अब सारी मानवता को परेशान कर रहा है। भारत में भी एक वृद्ध व्यक्ति की मौत हुई। मौत की इस पहली घटना ने सारे देश में खतरे की घंटी बजा दी है। सरकार ने तो बहुत पहले से तगड़ा इंतजाम किया हुआ है,लेकिन अब आम जनता के कान भी खड़े हो रहे हैं। विद्यालय,महाविद्यालय, मेले,सभाएं,जुलूस आदि अपने-आप स्थगित किए जा रहे हैं। विदेशियों को भारत लगभग नहीं आने दिया जा रहा है। भारतीय लोगों ने भी यात्राएं आदि घटा दी हैं। आयुर्वेद,यूनानी और होम्योपैथी के चिकित्सकों ने तरह-तरह के नुस्खे प्रचारित कर दिए हैं। ऐलोपेथी के चिकित्सक भी कोरोना के मरीजों की उचित देखभाल कर रहे हैं। लोगों का मांसाहार बहुत घट गया है। मांसाहार के व्यंजन सस्ते हो गए हैं और शाकाहार के मंहगे। बाजारों में अजीब-सी ठंडक समा गई है। शेयरों के दाम गिर गए हैं। भारत में इस विषाणु(वायरस) का प्रकोप ज्यादा नहीं होने का एक कारण यह भी है कि भारत मूल रुप से एक शाकाहारी देश है। जो देश अत्यंत स्वच्छ,स्वस्थ,समृद्ध और उन्नत माने जाते हैं,जैसे इटली,जर्मनी,अमेरिका वगैरह,वहां इस वायरस के फैलने का कारण क्या हो सकता है,इस पर आयुर्विज्ञानियों को शोध करना चाहिए। भारत में तो मौसम भी अब गर्म होता जा रहा है। इसीलिए शायद हम बचे हुए हैं। भारत की ‘नमस्ते’ सारी दुनिया में प्रचलित हो रही है। यदि नरेंद्र मोदी दुनिया के कुछ प्रमुख नेताओं को हवन करवाने की प्रेरणा दे सकें और सभी भारतीयों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकें तो सारे विश्व का वायुमंडल प्रदूषण रहित बन सकता है। कोरोना का रवैया भारत के प्रति अभी तक तो काफी करुणापूर्ण रहा है। हो सकता है कि एलोपैथी की बड़ी-बड़ी प्रयोगशालाएं शीघ्र ही इस विषाणु का तोड़ निकाल लेंगी,वरना भारत सरकार और आम जनता अपने आयुर्वेदिक,यूनानी और होम्योपैथी के नुस्खों से अपने विदेशी मित्रों को क्यों नहीं परिचित करा देते ? यदि उनसे कुछ फायदा नहीं होगा,तो नुकसान भी नहीं होगा।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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