डॉ. रामबली मिश्र ‘हरिहरपुरी’
वाराणसी(उत्तरप्रदेश)
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मेरे मन का मीत मिला है।
दिल का प्यारा हुआ खुला हैll
यह स्वप्निल स्नेहिल स्वर्णिम अति।
साथ निभाता हिला-मिला हैll
चमक रहा है तेजपुंज सा।
बहुत दुलारा घुला-मिला हैll
साथ छोड़कर कहीं न जाताl
हाथ पकड़कर राह चला हैll
है मदमस्त निराला सुंदर।
मृदु भाषण की दिव्य कला हैll
गीत सुनाता मधुर स्वरों में।
अतिशय मोहक कंठ खिला हैll
अति मोहक है रूप अनोखा।
सहज मोहनी मंत्र मिला हैll
लचकदार है देह मनोरम।
ऐसा मानो प्रेम किला हैll
मन अति स्वच्छ सरल निष्कामी।
दंभरहित प्राणी अगला हैll
वीन बजाता सुधि-बुधि खो कर।
अति आनंदक सरस गला हैll
अकथ कल्पना लोक निवासी।
बड़े भाग्य से मीत मिला हैll