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विश्व की महान संस्कृति का ध्वजवाहक हिन्‍दू नववर्ष

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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नव वर्ष विशेष……………..

सभी जानते हैं वैदिक धर्म संसार का एकमात्र सबसे पुराना धर्म है,जिसका साक्ष्य है ‘वेद’। वेद दुनिया की प्रथम पुस्तक ही नहीं,बल्कि यह मानव सभ्यता का सबसे पुराना लिखित प्रथम दस्तावेज है। चैत्र मास सनातन वैदिक धर्म के संवत्सर का प्रथम मास है और इसका आरम्भ कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से ही होता है। इसके बाद चैत्र मास का शुक्ल पक्ष आरम्भ होता है और प्रतिपदा के दिन नवसंवत्सर मनाया जाता है।
अब सवाल उठता है कि जब चैत्र मास का प्रारम्भ कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से होता है तो नवसंवत्सर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष वाली प्रतिपदा को क्यों ? सभी मासों में दो पक्ष होते हैं यानि कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष। चूँकि प्रभु ने अमैथुनी मानव सृष्टि में ऋषियों व मनुष्यों को जन्म सृष्टि के आरम्भ में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही दिया था और इसके साथ इसी दिन परमात्मा से हमारे चार ऋषियों अग्नि,वायु,आदित्य और अंगिरा को एक-एक वेद का ज्ञान दिया था, इसलिए ही संवत्सर की गणना एवं नव संवत्सर पर उत्सव का आयोजन चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही किया जाता है। इस प्रकार यह दिन कल्प, सृष्टि,युगादि का प्रारंभिक दिन है।
विश्व की सभी काल गणनाओं में सबसे प्रमाणिक, ज्योतिष विज्ञान द्वारा निर्मित अनुसार सत्ययुग(युगों में प्रथम) का प्रारम्भ भी इसी तिथि को हुआ था। इसके अलावा आधुनिक वैज्ञानिक भी सृष्टि की उत्पत्ति का समय पौने दो अरब वर्ष से अधिक मानते हैं। हमारे वेद के विद्वानों व ऋषियों को सृष्टि के आरम्भ से ही वर्ष, महीनों,पक्ष,सप्ताह एवं सात दिनों रविवार से शनिवार तक के नामों का ज्ञान था। इसी कारण उन्होंने संवत्सर का प्रचलन गणितीय और खगोलशास्त्रीय संगणना के अनुसार आरम्भ कर काल गणना आरम्भ कर दी थी। आज तक इसी का यानि वर्ष, महीनों,पक्ष,सप्ताह एवं सात दिनों रविवार से शनिवार तक का अनुकरण समस्त संसार व मत-मतान्तरों द्वारा किया जा रहा है। इस कड़ी में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि, भारतीय कालगणना के प्रारंभ से लेकर आज तक सेकंड के सौवें भाग का भी अंतर नहीं आया है यानि आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। इसलिए ही हम सनातनी गर्व से इस दिन को राष्ट्रीय गौरवशाली परम्परा का प्रतीक मानते है।
यदि हम भारत की बात करें तो यहाँ भी अलग अलग राज्यों में नव वर्ष चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नवसंवत्सर,वहीं असम में इसे रोंगली बिहू,महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा,पंजाब में वैशाखी,जम्मू कश्मीर में नवरेह, आंध्र प्रदेश में उगादिनाम,केरल में विशु और सिंध में चेटीचंड कह कर बुलाते हैं।
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा वाले दिन अनेक ऐसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व सामाजिक घटनाएं हुई हैं जिसके कारण इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इस दिन से सम्बन्धित कुछ सामाजिक एवं ऐतिहासिक संदर्भों का उल्लेख-

ब्रह्मपुराण के अनुसार त्रिदेवों में से एक पितामह ब्रह्मा ने इसी दिन सूर्योदय से सृष्टिनिर्माण प्रारम्भ किया था,इसलिए यह सृष्टि का आरम्भ दिवस यानि भारतीय नववर्ष का पहला दिन चैत्र प्रतिपदा से भारतीय नव वर्ष प्रारंभ होता है।

इसी तिथि को रेवती नक्षत्र में विष्कुम्भ योग में दिन के समय भगवान के आदि अवतार मत्स्य रूप का प्रादुर्भाव भी माना जाता है।

त्रेता युग में इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम ने बालि के अत्याचारी शासन से प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने पर मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ।

द्वापर युग में इसी दिन महाराज युधिष्ठर का भी राज्याभिषेक हुआ और राजसूर्य यज्ञ के साथ युधिष्ठर संवत् प्रारम्भ हुआ।

कलयुग में इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने अपना राज्य स्थापित किया। इस दिन ही से इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।

माँ दुर्गा की साधना चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस यानि शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात नवरात्री की भी शुरुआत इसी दिन से होती है।

‘गुरुमुखी’ के रचनाकार सिखों के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म भी इसी दिन हुआ।

वसंत ऋतु पूरी तरह से व्यक्त होती है चैत्र में क्योंकि सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है इस महीने में। इसलिए इस माह का वैदिक नाम है-मधु मास।

गणगौर मतलब गण (शिव) तथा गौर (पार्वती) के आधार पर पर्व चैत्र माह में बड़ी ही श्रध्दा से कुँवारी लड़कियों द्वारा मनपसंद वर पाने की कामना है, जबकि विवाहित महिला अपने लिए अखंड सौभाग्य,पीहर और ससुराल की समृद्धि की कामना के लिए मनाती हैं। यह पर्व आस्था,प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है।

यदि आज के दिन हम नीम के कोमल पत्ते,पुष्प, काली मिर्च,नमक,हींग,जीरा,मिश्री और अजवाइन मिलाकर चूर्ण बनाकर सेवन करते हैं तो संपूर्ण वर्ष रोग से मुक्त रहते हैं।इस प्रकार वर्णित सभी तथ्यों से यह स्पष्ट है कि सही मायने में-वास्तव में ये वर्ष का सबसे श्रेष्ठ दिवस है। इसलिए ही चैत्र प्रतिपदा का यह प्रथम दिन अनेक मायनों में महत्वपूर्ण है।
स्पष्ट है कि यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है। ऎसे हमारे सनातन एवं गौरवपूर्ण नववर्ष को हमें परस्पर अभिनन्दन और शुभकामना,मंगलकामना,नववर्ष मधुर मिलन आदि के साथ धूमधाम से मनाना चाहिए।

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