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राष्ट्रप्रेम और साहित्यकारों की महती भूमिका

डॉ.अर्चना मिश्रा शुक्ला
कानपुर (उत्तरप्रदेश)
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हम सब यह तो जानते ही हैं कि हमारे देश में अनेकानेक वीरों ने अपना बलिदान देकर अपने देश को अंगेजों से देश को मुक्त कराया। स्वतंत्रता आन्दोलन में कुछ रचनाकार चिरपरिचित हैं,जिन्हें हम लोग जानते हैं,पर उसमें हजारों ऐसे भी हैं, जिनका नाम भी हम नहीं जानते। जो इस देश के लिए बलिदान हुए हैं,जिन्होंने लिखा तो बहुत कम है पर उनकी रचनाएं बहुत ही प्रेरणाप्रद रही हैं। कई रचनाकारों के नाम भी इतिहास में दर्ज नहीं है। १८५७ में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मंगल पाण्डेय, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई (मनु),नाना साहब और तात्याटोपे आदि के नेतृत्व में लड़ा गया। फलस्वरुप भारतवासियों का अंग्रेजों के प्रति द्रष्टिकोण बदल गया था। भारतमाता सदियों से परतंत्रता के दंश को झेल रही थी,या यूँ कहें कि भारतमाता और उसकी संतानें एक अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर थी। ‘सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम’ स्वतंत्रता के सपूतों के लिए गर्वित होकर गुनगुनाने का गीत बनकर साहित्य में प्रकट हुआ,वहीं युग प्रवर्तक कवि भारतेंदु हरिशचन्द्र अंग्रेजों की हुकूमत से प्रतिफलित तत्कालीन दुःख दारिद्र्य एवं राष्ट्र प्रेम की प्रेरणादायी रचनाए समर्पित कर रहे थे।
अंग्रेजों के अत्याचार के विरोध में उस समय के कवि अपनी मुखर लेखनी चलते रहे। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने जो नारा दिया-‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिदध अधिकार है’,ने भरत के कवियों और गीतकारों में ऐसी आग लगाई कि,रामनरेश त्रिपाठी,मैथिलीशरण गुप्त,श्रीधर पाठक,बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’,माखनलाल चतुर्वेदी,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’,सुमित्रानंदन पन्त,महादेवी वर्मा,सुभद्रा कुमारी चौहान,शियाराम शरणगुप्त,सोहनलाल द्विवेदी,श्यामनारायण पाण्डेय,हरिवंशराय बच्चन एवं शिवमंगल शिंह ‘सुमन’ आदि अनेक कवियों ने स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में अपनी अलग भूमिका प्रस्तुत की।
जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड का परिणाम था कि, पूरे देश में विद्रोह के स्वर सुनाई दे रहे थे। भगतसिंह,सुखदेव,राजगुरु,चन्द्रशेखर आजाद व रामप्रसाद बिस्मिल सरीखे युवा क्रांतिकारियों के साथ आजादी के स्वर एकसाथ सुनाई दे रहे थे-
‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजुएँ कातिल में है।’
साइमन कमीशन के विरोध में ही लाला लाजपत राय शहीद हो गए थे। बदले में वीर भगतसिंह ने सांडर्स को गोलियों से भून डाला। इसके बाद केन्द्रीय असेंबली में बम फोड़ने की घटना का अंजाम भगतसिंह,सुखदेव व राजगुरु को फांसी की सजा दी गई। एक ओर क्रांतिकारी स्वतंत्रता के लिए बलिदान हो रहे थे,तो दूसरी तरफ महात्मा गाँधी के संरक्षण में सत्य और अहिंसा के सिद्धान्तों का स्वतंत्रता आन्दोलन गति पकड़ता जा रहा था। गाँधी ने ऐतिहासिक ‘दांडी यात्रा’ की और ‘नमक कानून’ तोड़ा,जिसके परिणाम स्वरुप महात्मा गाँधी व अन्य नेताओं को गिरफ्तार किया गया। इसके विद्रोह में असंतोष फैल गया था,जिसे कवियों ने पूरी सच्चाई और सरलता के साथ व्यक्त किया है।
गाँधी जी के पक्ष में कोई फैसला नहीं हुआ,इससे जनमानस में आक्रोश फूट पड़ा और स्वतंत्रता की लालसा अजस्त्र धारा के रूप में कितने ही पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही थी। स्वतंत्रता से सम्बंधित कितनी ही रचनाओं को ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था। उन रचनाओं की ही बात करते हैं,जो ब्रिटिश हुकूमत से बचते हुए आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण रही है और स्वतंत्रता के युद्ध को उसी रूप में प्रस्तुत करने में सहायक भी है।
स्वतंत्रता का युद्ध अपने चरम पर पहुँचने को जितना बेताब था,तो अंग्रेजों का दमन चक्र भी अपने उसी शबाब पर था। स्वतंत्रता के लिए बलिदान हो जाने वाले शहीदों की याद में कवियों ने अपनी लेखनी खूब उठाई।
आधुनिक कवियों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के वीभत्स चित्रों पर भी अपनी लेखनी चलाई है। कहीं भारतीय जन-जीवन की आर्थिक स्थिति को उकेरा है,तो कहीं राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत रचना ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ देखने को मिली है।आधुनिक काव्य में बहुत सारे ऐसे राष्ट्रीय गीत हैं, जो स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने वाली जनता उत्साहपूर्वक सस्वर गाती रही है। राष्ट्रीयता की बलवती भावना का ही परिणाम है कि,हम एक संपूर्ण प्रभुत्व लोकतंत्रात्मक गणराज्य के नागरिक हैं।

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