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खीजा हुआ हूँ

दृष्टि भानुशाली
नवी मुंबई(महाराष्ट्र) 
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कोई न आना मनाने मुझे,
समझानेबुझाने,बहलाने मुझे
सोचा है थोड़ा एकांत रहूं,
क्योंकि मैं खीजा हुआ हूँ।

हर एक शय से खफा हूँ,
है एक मेरी यही आरज़ू
कोई ना करना मुझसे गुफ्तगू,
क्योंकि में खीजा हुआ हूँ।

ठंडी हवा भी लू-सी लगे,
गुड़ भी लगे गिलोय जैसा
हो गया अर्श में रवि से इंदु,
अभी तक मैं खीजा हुआ हूँ।

छोटी-सी खरोच आँखों में समाई,
पुरानी चोटें ज़हन में आईं
हर गर्दिश सुरती कर रहा हूँ,
क्योंकि में खीजा हुआ हूँ।

सारी बातें फरियाद-सी लगें,
हर एक दोस्त हरीफ़-सा लगे
व्याकुल हूँ मैं क्या करूं ?
क्योंकि मैं खीजा हुआ हूँ।

जीवन का है एक यही दस्तूर,
सभी है अपने कार्यों में मसरूफ।
कोई न आया मनाने मुझे!
इसीलिए मैं खीजा हुआ हूँ…॥
(इक दृष्टि यहाँ भी:खीजा हुआ-चिढ़ा हुआ,अर्श- आकाश,इंदु-चंद्रमा,गिलोय-कड़वी बेल,जिसके पत्ते दवा के काम आते,सुरती-याद,हरीफ़-शत्रु,दस्तूर-नियम,मसरूफ-व्यस्त)

परिचय–दृष्टि जगदीश भानुशाली मेधावी छात्रा,अच्छी खिलाड़ी और लेखन की शौकीन भी है। इनकी जन्म तारीख ११ अप्रैल २००४ तथा जन्म स्थान-मुंबई है। वर्तमान पता कोपरखैरने(नवी मुंबई) है। फिलहाल नवी मुम्बई स्थित निजी विद्यालय में अध्ययनरत है। आपकी विशेष उपलब्धियों में शिक्षा में ७ पुरस्कार मिलना है,तो औरंगाबाद में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हुए फुटबाल खेल में प्रथम स्थान पाया है। लेखन,कहानी और कविता बोलने की स्पर्धाओं में लगातार द्वितीय स्थान की उपलब्धि भी है,जबकि हिंदी भाषण स्पर्धा में प्रथम रही है।

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