कुल पृष्ठ दर्शन : 281

You are currently viewing दीपक एक जलाया था…

दीपक एक जलाया था…

कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना ‘गिरीश’
भोपाल(मध्यप्रदेश)
***********************************************************************************
कल मैंने दीवट पर दीपक एक जलाया था,
हरदिन प्रभु उसमें तेरा ही रूप समाया था
तेरी मोहनी मूरत के ही देखे थे रूप सभी-
राम,रहीम,वाहेगुरु कभी यीशु उसमें पाया था।

आज की शाम ढले जब दर दर घर-घर दीप जले,
अपने घर भी मैंने दीवट पर दीप एक जलाया था
हर दिन प्रभु तेरे नाम की थिरकती थी दीप शिखा-
राष्ट्र नमन में आज स्थिर दीप शिखा को पाया था।

प्रभु आज तुम्हारे अधरों नहीं पाई मैंने मुरली बंसी,
तुमने हाथों दस्ताने प्रभु मुख पर मॉस्क लगाया था
तुमने प्रभु अपना ही जीवन लगा दांव पर-
मानव सेवा का अलख अखंड जगाया था।

आज नहीं देखा मैंने मृग छाला में तुमको अविनाशी,
नील-कंठ डमरू त्रिशूल हिमगिरी बैठे तुम कैलाशी
सारे जग का परित्यज्य समेटते मुख अपने मुस्कान धरे-
अपने द्वारे शुचि-दंड लिए बन हरिजन तुमको पाया था।

हर संकट संकट-मोचन,रहे सहाय हनुमान बजरंग बली,
उद्दंड क्रूर निर्दय क्रोधी जिसका मन में रूप समाया था
इस संकट पग-पग पर थी सहाय रही पर पुलिस मिली-
इस दीप माल उसी पुलिस को जनसेवा उद्यत पाया था।

आज के दीपदान ने मिटा दिए सारे मन के अंधियारे,
पहचान रहा हूँ तुमको कण-कण हो तुम छिपे हुए
खोज रहा था मात्र दीवट दीप की ज्योति में तुमको-
नयन निमीलित देखा तो हर मानव में तुमको पाया था।

जाने अनजाने कितने ही रूपों प्रभु हो तुम साथ मेरे,
दीपशिखा पर काली रेखा में भी तेरा रूप समाया था
दीपक के प्रबल ज्योति-पुंज में भी हो शामिल तुम-
हर अंधियारे राह आस की तू ही बन कर आया था।

कल मैंने दीवट पर दीपक एक जलाया था,
राम,रहीम,वाहेगुरु कभी यीशु उसमें पाया था॥

परिचय-कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना का साहित्यिक उपनाम ‘गिरीश’ है। २३ मार्च १९४५ को आपका जन्म जन्म भोपाल (मप्र) में हुआ,तथा वर्तमान में स्थाई रुप से यहीं बसे हुए हैं। हिन्दी सहित अंग्रेजी (वाचाल:पंजाबी उर्दू)भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. सक्सेना ने बी.एस-सी.,एम.बी.बी.एस.,एम.एच.ए.,एम. बी.ए.,पी.जी.डी.एम.एल.एस. की शिक्षा हासिल की है। आपका कार्यक्षेत्र-चिकित्सक, अस्पताल प्रबंध,विधि चिकित्सा सलाहकार एवं पूर्व सैनिक(सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी) का है। सामाजिक गतिविधि में आप साहित्य -समाजसेवा में सक्रिय हैं। लेखन विधा-लेख, कविता,कहानी,लघुकथा आदि हैं।प्रकाशन में ‘कामयाब’,’सफरनामा’, ‘प्रतीक्षालय'(काव्य) तथा चाणक्य के दांत(लघुकथा संग्रह)आपके नाम हैं। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं। आपने त्रिमासिक द्विभाषी पत्रिका का बारह वर्ष सस्वामित्व-सम्पादन एवं प्रकाशन किया है। आपको लघुकथा भूषण,लघुकथाश्री(देहली),क्षितिज सम्मान (इंदौर)लघुकथा गौरव (होशंगाबाद)सम्मान प्राप्त हुआ है। ब्लॉग पर भी सक्रिय ‘गिरीश’ की विशेष उपलब्धि ३५ वर्ष की सगर्व सैन्य सेवा(रुग्ण सेवा का पुण्य समर्पण) है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य-समाजसेवा तो सब ही करते हैं,मेरा उद्देश्य है मन की उत्तंग तरंगों पर दुनिया को लोगों के मन तक पहुंचाना तथा मन से मन का तारतम्य बैठाना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद, आचार्य चतुर सेन हैं तो प्रेरणापुंज-मन की उदात्त उमंग है। विशेषज्ञता-सविनय है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“देश धरती का टुकड़ा नहीं,बंटे हुए लोगों की भीड़ नहीं,अपितु समग्र समर्पित जनमानस समूह का पर्याय है। क्लिष्ट संस्कृतनिष्ठ भाषा को हिन्दी नहीं कहा जा सकता। हिन्दी जनसामान्य के पढ़ने,समझने तथा बोलने की भाषा है,जिसमें ठूंस कर नहीं अपितु भाषा विन्यासानुचित एवं समावेशित उर्दू अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग वर्जित न हो।”

 

Leave a Reply