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रखना उर में आस

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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हँसकर मेरे गाँव का,
‌कहता फूल बुराँस।
आयेगी रे लालिमा,
रखना उर में आस॥

बूढ़े,बालक साथ में,
करते भोजन यार।
बड़े दिनों के बाद ये,
लगता है परिवार॥

मोदी जी अवतार हैं,
कलियुग के भगवान।
अँधियारा हरते सदा,
लाते मधुर विहान॥

ताने देकर गाँव की,
कहती जौ की बाल।
अरे गाँव ही दु:ख में ,
बनता तेरी ढाल॥

चुड़कानी हँस कह रही,
आई मेरी याद।
आया अपने गाँव तू,
बड़े दिनों के बाद॥

मेरे स्वागत में खिला,
जंगल में क्वेराल।
लाली लेकर है खड़ी,
मधुर बुराँसी डाल॥

चीं-चीं,पौं-पौं से भला,
अरे सुहाना मौन।
बिना मोल का ध्यान है,
पाता जग में कौन ?॥

फूलों का सिरमौर है ,
वन का लाल बुराँस।
इस विपदा के काल में,
बाँटे मधुर उछास॥

अब तक मूरख ही रहे,
निज से था नित बैर।
घूमे बाहर,की नहीं ,
उर अन्दर की सैर॥

उर में रख विश्वास तू,
है ये सच्ची बात।
रजनी पलछिन की बची,
आना है प्रभात॥

भारत करना है तुझे,
काग घटा को दूर।
‘कोरोना’ आगे खड़ा,
मानवता मजबूर॥

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है।

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