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अध्यादेश अच्छा,लेकिन….?

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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उत्तरप्रदेश सरकार ने ‘लव जिहाद’ के खिलाफ अध्यादेश जारी कर दिया है। उस अध्यादेश में लव जिहाद शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है,यह अच्छी बात है,क्योंकि लव और जिहाद दोनों शब्द परस्पर विरोधी हैं। लव जिहाद का हिंदी रुप होगा- ‘प्रेमयुद्ध’। जहां प्रेम होगा,वहां युद्ध नहीं हो सकता और जहां युद्ध होगा,वहां प्रेम कैसे होगा ?
लव जिहाद में न लव होता है और न ही जिहाद होता है। उसमें धोखाधड़ी होती है,तिकड़म होती है, दुष्कर्म होता है,बल-प्रयोग होता है और गंदी राजनीति होती है। इसे रोकना तो हर सरकार का कर्तव्य है। इस उद्देश्य से बने हर कानून का स्वागत किया जाना चाहिए। उ.प्र. के मंत्री ने कहा है कि धर्म-परिवर्तन याने हिंदू लड़कियों को जबर्दस्ती मुसलमान बनाने के लगभग १०० ऐसे मामले सामने आए हैं। यदि ऐसे मामलों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए यह कानून लाया जा रहा है तो इसका अवश्य स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन छल-छिद्र से धर्म-परिवर्तन करने के खिलाफ तो पहले से ही कठोर कानून बने हुए हैं और कई राज्यों ने इन्हें पूरी दृढ़ता के साथ लागू भी किया है। उ.प्र. सरकार के इस अध्यादेश में एक नई और अच्छी बात यह है कि सामूहिक धर्म-परिवर्तन करनेवाली संस्थाओं पर प्रतिबंध लगेगा और उसकी सजा भी कठोर है,लेकिन सरकार यह कैसे सिद्ध करेगी कि फलां धर्म-परिवर्तन शादी के लिए ही किया गया है ? अगर धर्म-परिवर्तन के लिए शादी का बहाना बनाया गया है तो ऐसी शादी कितने दिन चलेगी ? और शादी की खातिर यदि कोई हिंदू या मुसलमान बनना चाहेगा तो कानून उसे कैसे रोकेगा ? जो हिंदू लड़की किसी मुसलमान से शादी करेगी, वह २ माह पहले इसकी सूचना पुलिस को देगी लेकिन किसी हिंदू लड़के से शादी करनेवाली मुसलमान लड़की को भी यह सूचना देनी होगी। सूचना देने भर से शादी कैसे रुकेगी ? ‘हिंदू मैरिज एक्ट’ और ‘मुस्लिम पर्सनल लाॅ’ के मुताबिक ऐसी शादी अवैध होती है लेकिन ‘स्पेशल मैरिज एक्ट’ यह अनुमति देता है कि शादी करनेवाले वर और वधू अपने-अपने धर्म को बदले बिना भी शादी कर सकते हैं। इसीलिए जो भी वर या वधू अपना धर्म बदलेंगे,उन्हें बदलने से कैसे रोका जा सकता है और जो नहीं बदलना चाहेंगे,उन्हें भी शादी करने से कैसे रोका जाएगा ? क्या यह कानून ‘घर वापसी’ याने शुद्धि करनेवालों पर भी लागू होगा ? यदि होगा तो तबलीगी जमात और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी इसे लागू करना पड़ेगा। जिस प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार होगी,वह अपने मतों के गणित के आधार पर इस कानून का लागू करेगी।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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