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कोरोना से बढ़ी योग की स्वीकार्यता

ललित गर्ग
दिल्ली

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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस २१ जून विशेष

भारतीय योग एवं ध्यान के माध्यम से भारत दुनिया में गुरु का दर्जा एवं एक अनूठी पहचान हासिल करने में सफल हो रहा है। इसीलिए,समूची दुनिया के लिए अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस स्वीकार्य हुआ है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सूझ-बूझ एवं प्रयासों से अपूर्व वातावरण बना है। आज कोरोना महामारी के कारण जीवन का हर क्षेत्र समस्याओं से घिरा हुआ है। इस साल छठे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का ध्यान कोरोना विषाणु महामारी के चलते घर पर रहकर परिवार के साथ योग करने पर केन्द्रित है। नरेंद्र मोदी ने योग दिवस को लेकर ‘माई लाइफ माई योगा’ प्रस्तुत किया है। इस साल योग दिवस की थीम ‘घर पर योगा और परिवार के साथ योगा’ है,क्योंकि आज हर व्यक्ति एवं परिवार अपने दैनिक जीवन में अत्यधिक तनाव-दबाव महसूस कर रहा है। हर आदमी संदेह,अंतद्वंद और मानसिक उथल-पुथल की जिंदगी जी रहा है। मनुष्य के सम्मुख जीवन का संकट खड़ा है। मानसिक संतुलन अस्त-व्यस्त हो रहा है। मानसिक संतुलन का अर्थ है विभिन्न परिस्थितियों में तालमेल स्थापित करना,जिसका सशक्त एवं प्रभावी माध्यम योग ही है। योग एक ऐसी तकनीक है,एक विज्ञान है जो हमारे शरीर,मन,विचार एवं आत्मा को स्वस्थ करती है। यह हमारे तनाव एवं कुंठा को दूर करती है। जब हम योग करते हैं, श्वासों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं,प्राणायाम और कसरत करते हैं तो यह सब हमारे शरीर और मन को भीतर से खुश और प्रफुल्लित रहने के लिए प्रेरित करती है।
योग मनुष्य की चेतना शुद्ध एवं बुद्ध करने की प्रक्रिया है,यह मनुष्य को ऊपर उठाने का उपक्रम है,जीवन में संतुलन स्थापित करने का साधन है एवं परमात्मा एवं परम ब्रह्म से एकाकार होने का विज्ञान है। ब्रह्म का साक्षात्कार ही जीवन का काम्य है,लक्ष्य है। यह साक्षात्कार न तो प्रवचन से ही प्राप्त हो सकता है,न बुद्धि से ही प्राप्त हो सकता है और न बहुत सुनने से ही प्राप्त हो सकता है,उसके लिए जरूरी है स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार और यह साक्षात्कार उसी को होता है जिसका अंतःकरण निर्मल और पवित्र है। पवित्र अंतःकरण ही वह दर्पण है,जिसमें आत्मा का दर्शन,प्रकृति का प्रदर्शन और ब्रह्म का संदर्शन होता है। शुद्ध अंतःकरण में बुद्धि आकाशवत् निर्मल और स्वच्छ रहती है,मन गंगा जैसा पवित्र रहता है,चित्त ऐसा स्थिर रहता हैl
जिस योग का महत्व हमारे वेदों या उससे भी पहले के साहित्य में मिलता है,आज वही योग दुनियाभर में अपनी प्रसिद्धि पा रहा है एवं कोरोना महासंकट के कारण योग की उपयोगिता पहले की तुलना में अधिक बढ़ गयी है। इसके फायदों को देखते हुए हर कोई अपनी भागती हुई जिंदगी एवं कोरोना के कारण पैदा हुए जीवन संकट में इसे अपनाता हुआ दिख रहा है। धीरे-धीरे ही सही,लेकिन लोगों को यह बात समझ में आ रही है कि योग करने से ना केवल कोरोना जैसी बड़ी से बड़ी बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है,बल्कि अपने जीवन में खुशहाली भी लाई जा सकती है,जीवन को संतुलित किया जा सकता है,कार्य-क्षमताओं को बढ़ाया जा सकता है।
शारीरिक,मानसिक और अध्यात्मिक शांति एवं स्वस्थ्यता के लिए योग की एकमात्र रास्ता है,लेकिन भोगवादी युग में योग का इतिहास समय की अनंत गहराइयों में छुप गया है। वैसे कुछ लोग यह भी मानते हैं कि,योग विज्ञान वेदों से भी प्राचीन है। हड़प्पा और मोहन जोदड़ों के समय की पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में अनेक ऐसी मूर्तियां मिली हैं,जिसमें शिव और पार्वती को विभिन्न योगासन करते हुए दिखाया गया है। दुनिया में भारतीय योग को परचम फहराने वाले स्वामी विवेकानंद कहते हैं-‘‘निर्मल हृदय ही सत्य के प्रतिबिम्ब के लिए सर्वोत्तम दर्पण है। इसलिए सारी साधना हृदय को निर्मल करने के लिए ही है। जब वह निर्मल हो जाता है तो सारे सत्य उसी क्षण उसमें प्रतिबिम्बित हो जाते हैं। पावित्र्य के बिना आध्यात्मिक शक्ति नहीं आ सकती। अपवित्र कल्पना उतनी ही बुरी है,जितना अपवित्र कार्य।’’ आज विश्व में जो आतंकवाद,हिंसा,युद्ध,साम्प्रदायिक विद्धेष की ज्वलंत समस्याएं खड़ी है,उसका कारण भी योग का अभाव ही है।
आज की कोरोना महामारी की जिंदगी मनुष्य को अशांति, असंतुलन, तनाव, थकान तथा चिड़चिड़ाहट की ओर धकेल रही हैं, जिससे अस्त-व्यस्तता बढ़ रही है। ऐसी विषमता एवं विसंगतिपूर्ण जिंदगी में योग से जीवन की गति को एक संगीतमय रफ्तार दी जा सकती है। योग हमारी भारतीय संस्कृति की प्राचीनतम पहचान है। योग-चेतना के जागरण से भावशुद्धि होती है। स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार के प्रयोगों से ग्रंथि-तंत्र के स्राव संतुलित होते हैं। इससे भाव पवित्र रहते हैं,विचार स्वस्थ बनते हैं। इन्हीं से कोरोना जैसी असाध्य महामारी,हिंसा,आतंकवाद,युद्ध एवं तनाव जैसी विश्वव्यापी समस्याओं का समाधान संभव है।
प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है और उसकी तलाश में जीवन भर प्रयास भी करता है। शाश्वत सुख किसमें है,इस बात का ज्ञान न होने से वह भौतिक वस्तुओं की ओर दौड़ता है और उनमें सुख ढूंढता है,परन्तु यह निर्विवाद सत्य है कि बाहरी वस्तुओं में सुख नहीं है। मनुष्य को सुख अपने अंदर ही खोजना चाहिए। जब मानव अपनी आधिदैविक,आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक समस्याओं को सुलझाने के लिए अथवा उनका समाधान पाने के लिए योग का आश्रय लेता है तो वह योग से जुड़ता है,संबंध बनाता है, जीवन में उतारने का प्रयास करता है,किन्तु जब उसके बारे में कुछ जानने लगता है,जानकर क्रिया की प्रक्रिया में चरण बढ़ाता है तो वह प्रयोग की सीमा में पहुंच जाता है। इसी प्रयोग की भूमिका को जीवन का अभिन्न अंग बनाकर हम मानवता को एक नयी शक्ल दे सकते हैं। हम भारतीयों के लिए यह गर्व का विषय है कि,योग भारत की विश्व को एक महान देन है।

कोरोना प्रकोप के बीच लोगों की खुशहाली,संतुलन,तनावमुक्ति,स्वास्थ्य,विश्वशांति और भले के लिए,पूरे विश्व भर के लोगों के लिए एक पूर्णतावादी दृष्टिकोण उपलब्ध कराने हेतु विश्व योग दिवस की निरन्तरता बनी रहे,यह अपेक्षित है।

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