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ज्ञान और उल्लास का पर्व वसंत पंचमी

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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वसंत पंचमी स्पर्धा विशेष …..

इस दिन पूजी जानेवाली विद्या की देवी सरस्वती बालक-बालिका की प्रथम पूज्या है। जब तक जातक (बालक-बालिका) कुछ समझने बूझने लायक हो जाता है,तो उसका अक्षरारंभ या विद्यारंभ कराया जाता है और यह बड़े उल्लास के साथ एक उत्सव के रूप में वसंत पंचमी के दिन मनाया जाता है। इस प्रकार विद्या वैदिक संस्कारों के अंतर्गत सभी छात्र-छात्राओं के जीवन से जुड़ जाती है और यहीं से ज्ञान का आरंभ होता है। इस दिन सरस्वती पूजा का भी विधान है।
अक्षरारंभ या विद्यारंभ संस्कार में नई पौध (संतान) को खल्ली छुलाई जाती है और किसी पंडित जी से या श्रेष्ठजन से बच्चे का हाथ पकड़़वाकर उससे लिखवाया जाता है- ‘ओनामासीधंग’ जिसकी शब्दकोशीय परिभाषा है ‘ऊँ नमः सिद्धम्।’ लेकिन,यह संस्कार जातक के जीवन और अबोध मन से जुड़ जाता है,क्योंकि यह उनके जीवन का (लगभग) प्रथम संस्कार होता है।
वेदों में भी सरस्वती की बंदना की गई है। यथा,
पावका: न: सरस्वती वाजे भिर्वा जिनीवती।
यज्ञंवष्टु धिया वसु:॥ (ऋग्वेद १.३.१०.)
अर्थात्,हे सरस्वती! हे विद्यादेवी! पावनता की तुम प्रतीक;हे बुद्धि-शक्ति की मूल तुम, आओ तुम मेरे नजदीक!
महो अर्ण: सरस्वती, प्रचेतयति केतुना।
धियो विश्वा वि राजति॥ ( ऋग्वेद १.३.१२.)
अर्थात्,तेरे प्रकाश के कारण ही,सारा ब्रह्मांड है ज्योतित,अगर यह नहीं तो होता तो होता जग में गहन तम व्यापित।
सभी प्रकाशों की स्रोत तुम,शिक्षा की तुम हो उद्गम;
मानव की कल्पना शक्ति की,सफलताओं के पीछे हो तुम।
वैसे सरस्लती की सर्वप्रचलित प्रार्थना यूँ है-
‘या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्र वस्त्राविता,
या वीणा वर दण्ड मण्डित करा या श्वेत पद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकर प्रतिभि: देवै सदा वन्दिता,
सा मा पातु सरस्वती भगवती नि: शेष जाड्यापहा॥’
अर्थात्
जो निर्मलचन्द्र तुषार हार सी श्वेता,उज्जवल वस्त्र धारिता!
जो वीणा,वर, दण्ड हस्त सुशोभिता, श्वेतकमल विराजिता!
जो ब्रह्मा,विष्णु,शंकरादि देवों से सदा पूजिता-
वह भगवती सरस्वती माता! मेरी त्राता! दूर करें मेरी जड़ता!
बसंत पंचमी का त्योहार इस साल १६ फरवरी को मनाया जाएगा। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पचंमी यानी माँ सरस्वती का दिन मनाया जाता है। इस दिन माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना कर उनसे विद्या और बुद्धि का आशीर्वाद मांगा जाता है। कहते हैं कि इसी दिन माँ सरस्वती प्रकट हुईं थी।
बसंत पंचमी के मौके पर इस साल २ उत्तम योग बन रहे हैं,जिसके कारण पूरे जिन शुभ कार्य किए जा सकते हैं। यही नहीं,बसंत पंचमी इस बार रेवती नक्षत्र में मनाई जा रही है। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनकर सुबह सवेरे माँ सरस्वती की अराधना करते हैं।
बसंत पंचमी पर माँ सरस्वती की प्रतिमा या मूर्ति को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। माँ सरस्वती की वंदना का पाठ करें और विद्यार्थी चाहें तो माँ सरस्वती के लिए व्रत भी रख सकते हैं।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नई उमंग से सूर्योदय होता है और नई चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
यूँ तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं,वे इस दिन माँ शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या ? जो महत्व सैनिकों के लिए शस्त्रों और विजयादशमी का है,विद्वानों के लिए पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है,व्यापारियों के लिए तराजू, बाट,बही-खातों और दीपावली का है,वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक,गायक हों या वादक,नाटककार हों या नृत्यकार,सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और माँ सरस्वती की वंदना से करते हैं।

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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