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सैनिक की पत्नी का बसन्त

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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वसंत पंचमी स्पर्धा विशेष …..

दूर कहीं सीमा पर जब तुम होते हो,
मन मेरा बसन्ती हवा बन तुम्हारे पास चला जाता।
प्रिये,तेरे संग हर क्षण,हर पल…
बसन्त के मौसम सा लगता है।
माना कि दूर हो तुम मुझसे,
फिर भी तुम मुझमें…
बसन्त से महकते हो…।
हृदय की स्पन्दन में,
तुम समाए हो मकरन्द बनकर…
तारों की चमक अब बढ़ने लगी,
कोहरा अब पराया लगने लगा…।
सूर्य की लाल किरणें,
अब सताने लगी…
प्रिये अबकी बसन्त में,
तुम ऐसे आना जैसे
बच्चे की पहली किलकारी,
वो उसका पहला कदम उठाना।
गर्म फूलती रोटियां,वो दोपहर की धूप,
वो आँगन की छाँव
कोयल की लंबी तान,
चिन्ता,फिक्र,पीड़ा
दर्द,उदासी,उद्विग्नता,
निराशा कुछ भी न हो इस बार…
तुम मुझमें ऐसे महकना,
जैसे महकती है सरसों खेत में।
ऐसे कई बसन्त तुम्हें देना है…
अपने वतन के लिए।
पर अबकी,मेरे हिस्से का बसन्त तुम लेते आना,
इस बसन्त बस,तुम मेरे बसन्त बनकर आना॥

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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