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भगवान महावीर के सिद्धान्त आज भी मूल्यवान

श्रीमती अर्चना जैन
दिल्ली(भारत)
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भगवान महावीर स्वामी का जन्म आज से लगभग २६०० वर्ष पूर्व वैशाली के कुंडग्राम में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहां हुआ था। इन्होंने ‘जियो और जीने दो’ के संदेश को अपनाया और हम सबको भी इस संदेश का पालन करने को कहा। ‘अहिंसा’ सबसे बड़ा धर्म है,हमें जियो और जीने दो के इस संदेश को ध्यान में रखना चाहिए। इस धरा पर छोटे से छोटे जीव भी अपनी इच्छा से रहने का अधिकार रखते हैं,और हमें किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए। यही अहिंसा है। गांधी जी ने भी इसी अहिंसा का पालन किया और अहिंसावादी कहलाए। हर जीवित प्राणी के प्रति दया भाव अहिंसा है ।भगवान महावीर कहते हैं कि,मनुष्य स्वयं के दोष के कारण ही दुखी होते हैं,और खुद की गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं। खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रु पर विजय प्राप्त करने से भी बेहतर है।
भगवान महावीर कहते हैं कि,सभी आत्माएं समान है,कोई छोटा-बड़ा नहीं है। जो व्यवहार आप अपने साथ नहीं चाहते,वह व्यवहार आप किसी अन्य जीव के प्रति भी ना करें। निर्दोष पशु-पक्षियों आदि को अपने घरों में पिंजरे में कैद रखकर उनके दिल दुखाने का फल ही है,जो आज इंसान भुगत रहा है। झूठ बोलना और झूठ बोलने का भाव करना भी महापाप है। हम दूसरों से तो सत्य बोलने की अपेक्षा रखते हैं,मगर स्वयं झूठ बोलते हैं,इस सत्यता को पहले स्वयं अपने जीवन में अपनाएं, यही उनका कहना था।
भगवान महावीर ने कहा कि,चोरी करना और चोरी करने का भाव करना दुष्कर्म है। हमें किसी भी वस्तु को बिना उसके स्वामी की आज्ञा के नहीं उठाना चाहिए,वह चोरी कहलाता है। छल-कपट करना और भावों में कुटिलता हमें नहीं रखनी चाहिए। हम स्वयं को भगवान महावीर के अनुयायी बताते हैं तो उनके एक भी सिद्धांत को हम क्यों नहीं मानते हैं ? इतना बड़ा छल हम किसी ओर के साथ नहीं,बल्कि स्वयं के साथ कर रहे हैं। भगवान के मुताबिक लोभी व्यक्ति सदा दुखी रहता है। हमें जीवन में कभी लोभ नहीं करना चाहिए।
भगवान महावीर के ये सिद्धान्त आज के वर्तमान परिपेक्ष्य में घटित हो रहे हैं,जिन्हें हम अपना नहीं रहे हैं,और जीवन में दु:ख का अनुभव कर रहे हैं। अभी भी समय है कि हमें भगवान महावीर के इन सिद्धांतों को अपनाते हुए ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की सूक्ति को चरितार्थ करना चाहिए।

परिचय-श्रीमती अर्चना जैन का वर्तमान और स्थाई निवास देश की राजधानी और दिल दिल्ली स्थित कृष्णा नगर में है। आप नैतिक शिक्षण की अध्यापिका के रुप में बच्चों को धार्मिक शिक्षा देती हैं। उक्त श्रेष्ठ सेवा कार्य हेतु आपको स्वर्ण पदक(२०१७) सहित अन्य सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है। १० अक्टूबर १९७८ को बडौत(जिला बागपत-उप्र)में जन्मी अर्चना जैन को धार्मिक पुस्तकों सहित हिन्दी भाषा लिखने और पढ़ने का खूब शौक है। कार्यक्षेत्र में आप गृहिणी होकर भी सामाजिक कार्यक्रमों में सर्वाधिक सक्रिय रहती हैं। सामाजिक गतिविधि के निमित्त निस्वार्थ भाव से सेवा देना,बच्चों को संस्कार देने हेतु शिविरों में पढ़ाना,पाठशाला लगाना, गरीबों की मदद करना एवं धार्मिक कार्यों में सहयोग तथा परिवारजनों की सेवा करना आपकी खुशी और आपकी खासियत है। इनकी शिक्षा बी.ए. सहित नर्सरी शिक्षक प्रशिक्षण है। आपको भाषा ज्ञान-हिंदी सहित संस्कृत व प्राकृत का है। हाल ही में लेखन शुरू करने वाली अर्चना जैन का विशेष प्रयास-बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए हर सफल प्रयास जारी रखना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार और सभी को संस्कारवान बनाना है। आपकी दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुन्शी प्रेमचन्द व कबीर दास जी हैं तो प्रेरणापुंज-मित्र अजय जैन ‘विकल्प'(सम्पादक) की प्रेरणा और उत्साहवर्धन है। आपकी विशेषज्ञता-चित्रकला,हस्तकला आदि में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी मातृ भाषा है,हमारे देश के हर कोने में हिन्दी का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। प्रत्येक सरकारी और निजी विद्यालय सहित दफ्तरों, रेलवे स्टेशन,हवाईअड्डा,अस्पतालों आदि सभी कार्य क्षेत्रों में हिन्दी बोली जानी चाहिए और इसे ही प्राथमिकता देनी चाहिए।