गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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न समझो खामोश ये रहती हैं,
तन्हाइयों में मेरी,मुझसे बातें करती हैं,
क्योंकि,दीवारें भी बोलती हैं…।
रोती हैं साथ मेरे तो कभी हँसती हैं,
घड़ी की टिक-टिक,
झींगुर की झन-झन से कुछ कहती,कुछ सुनती हैं।
क्योंकि,दीवारें…।
बनाये थे जो चित्र बचपन में इन पर,
सूनी निगाहों से मन के रहस्य खोलती हैं।
क्योंकि,दीवारें…।
कुछ नाराज उखड़ी-उखड़ी-सी रहती हैं,
यहीं मेरे जीवन का इतिहास बताती हैं।
कुछ खंडहर हैं अब शेष जीवन के,
जीवन के कल को आज से जोड़ती हैं।
दीवारें भी कुछ बोलती हैं…।
जब डरती हूँअनजानों से,मौसम के बदलते रंगों से,
थाम लेती हैं बाँहों के घेरे में अपने।
एहसास कराती अपने होने का,
सुरक्षा का भाव देती हैं।
क्योंकि,दीवारें…।
घूरती निगाहें टकराकर रुक जाती हैं,
ताक लगाए भेड़िये,पहरेदार ये बन जाती हैं।
कहने को चार दीवारें,स्वतंत्र मैं हो जाती हूँ,
थक जाती जब काम से,गोद में इनकी निश्चिंत हो सो जाती हूँ।
खिड़की-दरवाजे इसके,नव जीवन का आभास कराते हैं।
सूर्य की किरणें आकर मुझे सहलाती हैं,
चिड़ियों की चहचहाहट,फूलों की खुशबू से आकर नव जीवन से भेंट कराती हैं।
क्योंकि,दीवारें भी कुछ बोलती हैं…॥
परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनामगीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”