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अब ‘मित्र’ शब्द की पवित्रता भूले

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’
ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर)

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‘मित्र’ वह जो विपत्ति में काम आए, अर्थात मुसीबत,कष्ट,आपदा,मुश्किल,संकट जैसे क्षणों मे सहभागी बने,सहयोग करे,वह मित्र कहलाता है। दूसरी ओर जो विपत्ति, मुसीबत,कष्ट,आपदा,संकट इत्यादि का कारण बने और असहयोग करे,वह शत्रु से भी धूर्त माना जाता हैl यूँ कहें कि जिसके ऐसे मित्र हों,उन्हें शत्रुओं की आवश्यकता ही नहीं रहती हैl आज के दौर में कुछ इसी प्रकार की मित्रता के किस्से प्रचलित हैं। जो बैठते तो मित्र के पास हैं,और पक्ष शत्रु का लेते हैं। क्या ऐसे मित्रों से दूरी नहीं बनानी चाहिए,क्योंकि ना जाने कब धोखा दे जाएं ? सच्चाई यह है कि वर्तमान मित्र अब ‘मित्र’ शब्द की पवित्रता का अर्थ भूल चुके हैं। कड़वा सच तो यह भी है कि ऐसे मित्रों से वह शक्तिशाली शत्रु भले, जो ठेठ शत्रुता के चलते अपना-अपना रास्ता नापते हैं और अपने शत्रु के जीवन-चक्र से दूर ही रहते हैं।

परिचय–इंदु भूषण बाली का साहित्यिक उपनाम `परवाज़ मनावरी`हैl इनकी जन्म तारीख २० सितम्बर १९६२ एवं जन्म स्थान-मनावर(वर्तमान पाकिस्तान में)हैl वर्तमान और स्थाई निवास तहसील ज्यौड़ियां,जिला-जम्मू(जम्मू कश्मीर)हैl राज्य जम्मू-कश्मीर के श्री बाली की शिक्षा-पी.यू.सी. और शिरोमणि हैl कार्यक्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों से लड़ना व आलोचना है,हालाँकि एसएसबी विभाग से सेवानिवृत्त हैंl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप पत्रकार,समाजसेवक, लेखक एवं भारत के राष्ट्रपति पद के पूर्व प्रत्याशी रहे हैंl आपकी लेखन विधा-लघुकथा,ग़ज़ल,लेख,व्यंग्य और आलोचना इत्यादि हैl प्रकाशन में आपके खाते में ७ पुस्तकें(व्हेयर इज कांस्टिट्यूशन ? लॉ एन्ड जस्टिस ?(अंग्रेजी),कड़वे सच,मुझे न्याय दो(हिंदी) तथा डोगरी में फिट्’टे मुँह तुंदा आदि)हैंl कई अख़बारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैंl लेखन के लिए कुछ सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैंl अपने जीवन में विशेष उपलब्धि-अनंत मानने वाले परवाज़ मनावरी की लेखनी का उद्देश्य-भ्रष्टाचार से मुक्ति हैl प्रेरणा पुंज-राष्ट्रभक्ति है तो विशेषज्ञता-संविधानिक संघर्ष एवं राष्ट्रप्रेम में जीवन समर्पित है।

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