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अब भी सुधार का मौका

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में जो भाषण दिया,उससे भारत के मुसलमान संतुष्ट होंगे या नहीं,यह कहना मुश्किल है लेकिन यह मानना पड़ेगा कि उनका भाषण काफी प्रभावशाली,खोजपूर्ण और रोचक था। विपक्षी नेताओं ने भी कुछ तर्क अच्छे दिए, लेकिन मोदी के सामने कोई भी टिक नहीं सका। भारत का विपक्ष कितना कमजोर है, यह संसद की कार्रवाई देखने से पता चलता है। सारी बहस का केन्द्रीय मुद्दा था-नया नागरिकता कानून और नागरिकता रजिस्टर, लेकिन विपक्ष सिर्फ आर्थिक धुन बजाता रहा। उसकी सारी ताकत देश को यह बताने में लगी रही कि सरकार ने नागरिकता का पटाखा इसलिए फोड़ा है कि,जनता का ध्यान उसकी आर्थिक कठिनाइयों से मोड़ दिया जाए। यह तर्क या अनुमान ठीक हो सकता है ,लेकिन उसने नागरिकता कानून के विरुद्ध क्या ऐसे तर्क दिए हैं,जिन्हें हम अकाट्य कह सकें या जिन्हें सुनकर सरकार इस कानून में उचित संशोधन करने के लिए तैयार हो जाए ? प्रधानमंत्री का यह आश्वासन बिल्कुल समयानुकूल और सराहनीय है कि इस नए कानून से किसी भी भारतीय नागरिक (मुसलमान भी)को कोई नुकसान नहीं होने वाला है,लेकिन यही बात मोदी और अमित शाह मुसलमान नेताओं को बुलाकर उनके गले क्यों नहीं उतारते ? देश में उगे दर्जनों शाहीन बागों में जाकर भाजपा और संघ के लोग प्रदर्शनकारियों से सीधा संवाद क्यों नहीं करते ? जिन सांसदों ने इस कानून के पक्ष में मत दिया है,क्या उन्होंने ज़रा भी सोचा होगा कि यह इतने गहरे असंतोष का कारण बन जाएगा और यह अधमरे विपक्ष में जान डाल देगा ? ऐसा इसलिए हुआ है कि,असम में १९ लाख लोगों की नागरिकता अधर में लटक गई है। मुसलमानों को लगा कि कहीं सारा भारत ही असम न बन जाए। मुसलमानों के साथ-साथ हिंदू भी डर गए,क्योंकि असम में नागरिकता सूची के बाहरवालों में लाखों हिंदू हैं और वे मुसलमानों से कहीं ज्यादा हैं। पड़ौसी देशों के शरणार्थियों को शरण देने का कोई विरोध नहीं कर रहा है,लेकिन उसमें मुसलमानों का नाम हटा देने से गलतफहमी का बाजार अपने-आप गर्म हो गया है। यह गलतफहमी किसी भी सहीफहमी से ज्यादा डरावनी है। दिल्ली के चुनाव ने इसे सूर्पणखा राक्षसी का रुप दे दिया। अब सरकार चाहे तो संसद के वर्तमान सत्र में ही भूल-सुधार कर सकती है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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