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यह ऋतु मस्तानी

सुखवीन कंधारी
नवीं मुम्बई(महाराष्ट्र)
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‘बसंत पंचमी’ को हिंदी के प्रसिद्ध कविवर ‘सेनापति’ की इन पंक्तियों के साथ सांझा करना चाहती हूँ-
‘चहकि चकोर उठे,करि-करि जोर उठे।
टेर उठी सारिका,विनोद उपजावने।
चटकि गुलाब उठे,लटकि सरोज पूंज।
खटकि भराल रितुराज सुनि आवे॥’
भारत एक महान देश है। इसकी प्राकृतिक शोभा निराली है। पूरे संसार में छः ऋतुओं की सुंदरता संसार के किसी अन्य देश को प्राप्त नहीं है। बसंत ऋतु की शुरूआत सर्दी के अंत से होती है। बसंत के आते ही प्रकृति में एक नया जीवन आ जाता है। यह मौसम में ताजी हवा,गुनगुनी धूप के साथ उत्तम स्वास्थ्य लेकर आता है। कोयल की मीठी कूक, सरसों के खेतों में लहलहाते पीले फूलों, आमों की मंजरियों की महक से चारों ओर का वातावरण मनमोहक हो जाता है।
इस सुहाने मौसम में बसंत पंचमी का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था,जो संगीत और कला की देवी मानी जाती हैं। इसलिए यह दिन देवी सरस्वती के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। बंसत पंचमी को श्री पंचमी या फिर सरस्वती पंचमी भी कहते हैं। ऐसा कहा गया है कि इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहने जाते है,क्योंकि इस दिन पीला रंग बहुत ही शुभ माना जाता है। कहते हैं कि पीला रंग देवी सरस्वती का पंसदीदा रंग है,इसलिए पूजा के वक्त उन्हें केसर युक्त खीर और पीला लड्डू भोग के लिए चढ़ाया जाता है। इतना ही नहीं, देवी सरस्वती की मूर्ति को पीले रंग की साड़ी और सुंदर जेवर पहना कर श्रृंगार किया जाता है। पश्चिम बंगाल में तो माँ सरस्वती की मूर्ति का विसर्जन गंगा नदी में किया जाता है।
इन पंक्तियों के साथ वसंत पंचमी की शुभकामनाएँ-
बसंत ऋतु आई,बसंत ऋतु आई,
साथ अपने पंचमी ओै होली लाई।
सरसों फूली खेतों में,
अबीर गुलाल खिला गालों में।
बौर आमों में उठी झूल,
देख माँ सरस्वती हुई खुश।
वीणा से निकले स्वर,
रहो खुश,रहो स्वस्थ।
क्योंकि है मेरी यह़ ऋतु मस्तानी॥

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