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याद आते हैं वो दिन

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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‘बड़े दिन की छुट्टी’ स्पर्धा  विशेष………


स्कूल की छुट्टी मिलती थी उस दिन
बालक था मैं,सुनता था आ गया है ‘बड़ा दिन’,
न जाने क्यों बहुत याद आते हैं वह दिन-
केक का स्वाद मीठा लगता था उस दिन।

दो पैसे से मिलता था केक,याद आते हैं वो दिन
चार दोस्त मिलकर खाते थे उस दिन,
मालूम नहीं था,कौन किस जात का-उस दिन
धर्म से भी नहीं था लगाव-उस दिन।

चर्च के बड़े घंटे की आवाज सुनकर उस दिन
दौड़ कर जाता था वहाँ उस दिन,
सबको प्रणाम करता था उस दिन-
पादरी दादाजी देते थे आशीष उस दिन।

छुट्टी मिली थी खेलने की उस दिन
होमवर्क व बस्ते का बोझ नहीं था उस दिन,
पढ़ाई करते थे हम अपनी मर्जी से उस दिन-
रिजल्ट पर प्यार से पिटाई मिलती थी उस दिन।

न जाने क्यों भूल गया हूँ…उस दिन
बढ़ती उम्र का साथ-साथ,अपना रहा उस दिन,
हिन्दू,मुस्लिम,ईसाई मिलकर मनाते थे उस दिन-
सारे पर्व,जात तो किसी की नहीं गई थी उस दिन।

हे प्रभु,फिर से ला दीजिये वो दिन
जैसे नादान रहे हम उस दिन,
लौटाएं अमन-चैन,जैसे रहा उस दिन-
मनाऊँ बड़े दिन की छुट्टी,जैसा रही उस दिन॥

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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