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समय का पहिया

सुशीला रोहिला
सोनीपत(हरियाणा)
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क्षण बीते पल बीते-बीते दिनों-दिन,
बारह महीने बीते ज्यों-ज्यों
आया नव वर्ष का शुभ दिन,
बधाईयों की झंकार से विश्व प्रफुल्लित।

उन्नीस-बीस का अन्तर कहीं पर रहा,
कहीं-कहीं पर हो रही है पौ बारह
नौ दो ग्यारह हो गये पाकिस्तानी,
भारतीय सेना का हो रहा जयकारा।

अतीत काल का तांडव इतिहास रहा,
बयालिस जवानों को धोखे से मारा
सनसनी फैली चहूँ दिशी छाई कालिमा,
क्रांति के शस्त्र ने शत्रु को घुस कर मारा।

अतीत भारत की गौरव गाथा गाता,
मंगल ग्रह पर भी अपना परचम फहराता
भारत योग से विश्व में अपनी पहचान पाता,
बीता हुआ कल भविष्य की राह दिखाता।

नए वर्ष का सब करें सम्मान,
सदभावना का दीप जलाएं घर-घर
आंतक का तिमिर मिटे,सत्य का प्रकाश,
सत्य,अहिंसा,शांति का साम्राज्य हो।
सदगुरू के चरणों में शीश झुकाएएं,
सब मिल-जुल भारत को विश्व गुरु बनाएँ॥

परिचय–सुशीला रोहिला का साहित्यिक उपनाम कवियित्री सुशीला रोहिला हैl इनकी जन्म तारीख ३ मार्च १९७० और जन्म स्थान चुलकाना ग्राम हैl वर्तमान में आपका निवास सोनीपत(हरियाणा)में है। यही स्थाई पता भी है। हरियाणा राज्य की श्रीमती रोहिला ने हिन्दी में स्नातकोत्तर सहित प्रभाकर हिन्दी,बी.ए., कम्प्यूटर कोर्स,हिन्दी-अंंग्रेजी टंकण की भी शिक्षा ली हैl कार्यक्षेत्र में आप निजी विद्यालय में अध्यापिका(हिन्दी)हैंl सामाजिक गतिविधि के तहत शिक्षा और समाज सुधार में योगदान करती हैंl आपकी लेखन विधा-कहानी तथा कविता हैl शिक्षा की बोली और स्वच्छता पर आपकी किताब की तैयारी चल रही हैl इधर कई पत्र-पत्रिका में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका हैl विशेष उपलब्धि-अच्छी साहित्यकार तथा शिक्षक की पहचान मिलना है। सुशीला रोहिला की लेखनी का उद्देश्य-शिक्षा, राजनीति, विश्व को आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार मुक्त करना है,साथ ही जनजागरण,नारी सम्मान,भ्रूण हत्या का निवारण,हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाना और भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान प्रदान करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-हिन्दी है l आपकी विशेषज्ञता-हिन्दी लेखन एवं वाचन में हैl

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