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पथिक

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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पथिक-
चलते-चलते तुम पथिक,राह न जाना भूल।
सत्य मार्ग पर चल सदा,बन कर सुन्दर फूल॥

सहयोग-
बड़े-बड़े से काम भी,होते हैं संजोग।
मिलकर देते हैं सभी,अपना जब सहयोग॥

पंथ-
चलना अपने पंथ पर,भूल न जाना यार।
सफल काम होगा तभी,मान मिले संसार॥

मंजिल-
मंजिल सबकी है अलग,अपनी अपनी चाह।
सच्चे मन से जो चले,वो ही पाते राह॥

सार्थक-
सार्थक जीवन है वही,जो जीते हैं शान।
प्रभु की कर आराधना,जो पाते हैं ज्ञान॥

छाँव-
दु:ख पाकर जीतें उसे,मिलते सुख की छाँव।
कठिन डगर जो हो भले,कभी न थकते पाँव॥

कदम-
चलना कदम सम्हाल कर,पग-पग पर संताप।
सुख-दुख को सम मान कर,करना कारज आप।।

उमंग-
मन में भरी उमंग हो,जीवन में हो रंग।
साथी मिल कर राह पर,चलना सबके संग॥

समर्थ-
काम-काज सब कर चलो,होकर आज समर्थ।
बिना कार्य के फल नहीं,होते हैं सब व्यर्थ॥

सतत-
सरिता सतत प्रवाहिनी,बहती है दिन रैन।
सागर से मिलने वही,रहती है बेचैन॥

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