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तुम ही थे रहबर

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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गांधी तुम्हारे बिन ये देश है बंजर,
आँखें बनी हुई हैं इक खारा समुंदर।

लड़ते हैं भाई-भाई आपस में अब यहाँ,
ताने हुए रहते हैं सभी हाथ में खंज़र।

तुमने पढ़ाया पाठ अहिंसा का था हमें,
ताण्डव यहाँ हिंसा का होता है निरंतर।

लोगों के दिल में आपसी सद्भाव ना रहा,
क्या होगा नतीज़ा कुछ भी नहीं ख़बर।

आज़ाद कहते खुद को आज़ाद पर नहीं,
लिक्खेगा कौन आगे भारत का मुकद्दर।

शान्ति के पुजारी बस तुम और लाल थे,
तुम जैसे नहीं ओर भारत को मयस्सर।

आँसू लिए आँखों में याद करते हैं तुम्हें,
नमन तुम्हें,तुम ही थे इस देश के रहबर॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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