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ट्रम्प की यात्रा सिर्फ नौटंकी नहीं

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की इस भारत-यात्रा से भारत को कितना लाभ हुआ,यह तो यात्रा के बाद ही पता चलेगा लेकिन ट्रम्प ऐसे नेता हैं,जो अमेरिकी फायदे के लिए किसी भी देश को कितना ही निचोड़ सकते हैं। यह तथ्य उनकी ब्रिटेन, यूरोप तथा एशियाई देशों की विभिन्न यात्राओं में से अब तक उभरकर आया है। ट्रम्प की खूबी यह है कि वे सारी राजनयिक नज़ाकतों को ताक पर रखकर खरी-खरी बोल पड़ते हैं। उन्होंने नरेंद्र मोदी से अपने संबंधों की घनिष्टता पर बार-बार जोर दिया है,उन्हें ‘भारत का पिता’ भी कह दिया है लेकिन आपसी व्यापार के मामले में उन्होंने भारत के व्यवहार पर काफी कड़ुवे शब्दों में आपत्ति भी जताई है। अमेरिका ने अभी-अभी भारत का विकासमान राष्ट्र का दर्जा भी खत्म कर दिया है,जिसका अर्थ यह है कि भारत को अपने माल पर मिलने वाले अमेरिकी तट कर में भारी कटौती हो जाएगी। भारत ने भी जवाबी कार्रवाई कर दी है। इसीलिए,शायद इस यात्रा के दौरान आपसी व्यापार का मामला नहीं सुलझ पाएगा लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि ट्रम्प की यह यात्रा सिर्फ एक नौटंकी बनकर रह जाएगी। नौटंकी तो वह है ही। मोदी और ट्रम्प इस मामले में गुरु-शिष्य हैं। ट्रम्प का बार-बार यह कहना कि अहमदाबाद में उनके स्वागत में ५०-७० लाख लोग आएंगे,कोरा मजाक है। शायद उन्होंने फोन पर बातचीत में हजार को लाख समझ लिया हो। जो भी हो,ट्रम्प के लिए यही बहुत फायदेमंद है कि अमेरिका के ४० लाख भारतीय मतदाताओं को वे अपने चुनाव के लिए प्रभावित कर लेंगे। उनकी यात्रा के दौरान ५ समझौतों पर दस्तखत की तैयारी चल रही है। एक तो आतंकवाद विरोधी सहयोग,व्यापारिक सुविधाओं,बौद्धिक मालिकाना हक,भारत-प्रशांत क्षेत्र सहयोग तथा अंतरिक्ष और परमाणु सहयोग के समझौतों की घोषणा की तैयारियां चल रही हैं। चीनी वर्चस्व के विरुद्ध लड़ने में भी अमेरिका भारत को अपने साथ लेना चाहता है लेकिन अफगानिस्तान से अपना पिंड छुड़ाने में वह पाकिस्तान को गले लगाए बिना नहीं रह सकता। तालिबानी अफगानिस्तान से निपटने की कोई तैयारी भारत के पास अभी तक दिखाई नहीं पड़ रही है। ट्रम्प से इस मामले में मोदी को खुलकर बात करनी चाहिए। भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता के ट्रम्प के प्रस्ताव को औपचारिक तौर पर भारत नहीं मानेगा,लेकिन ट्रम्प चाहे तो वे अपनी इस सदिच्छा को अनौपचारिक रुप में कृतार्थ कर सकते हैं।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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