हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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आज ही के दिन बहत्तर वर्षों के पहले,
प्राण हिंसा से,अहिंसाई पुजारी के निकले।
स्वर्ग में और दिल में सारी दुनिया वालों के,
वास करता है वो पिछले बहत्तर सालों से।
नाम है उसका मोहनदास करमचंद गांधी,
अंग्रेजों पे जिसका कहर बरपा था बनकर आंधी।
सत्य वो कहता रहा,चलता अहिंसा पे रहा,
उसके रस्तों से सदा झूठ डरा करता रहा।
सत्य और अहिंसा से दी दस्तक आजादी की,
भागना उनको पड़ा छीनी जिनने आजादी थी।
मोह-माया के न लालच से बंधा कभी भी वो,
देह तो त्यागी,मगर रहता यहीं अब भी वो।
आने-जाने के तो दस्तूर यहां हैं `रब` के,
पर वो आ के न गया,अब भी है दिल में सबके।
आओ मिल के हम सभी अपनी उसे श्रद्धांजलि दें,
पाई थी जिसके प्रयासों से हमने आजादी ये।
`हे राम,हे राम,हे राम`,..कहता हुआ गया था वो,
हम कहें राम से फिर इक बार उसे `भारत` में भेजोll
परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।