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दृष्टिकोण

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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पिछले वर्ष नवरात्रि में रायपुर अपने भैया के घर गई थी। दोपहर का समय था,गेट में कुछ बच्चों की आवाज़ सुनकर मैं भी भाभी के साथ बाहर निकली तो देखा,कुछ लड़कियाँ बाहर खड़ी थी। उनमें से एक ने भाभी को देखते ही कहा-“आँटी कुँवारी खिलाओगी क्या ? कब आएं हम लोग..?”
तो जवाब में भाभी ने कहा-“हाँ खिलाऊँगी न,कल सुबह दस बजे तुम लोग नौ लड़कियाँ आ जाना, साथ में अपने छोटे भाई को भी लेते आना।”
ये देखकर मैं हैरान होते हुए बोली-“भाभी ये कैसा निमंत्रण था ? कौन है ये लड़कियाँ,कहाँ से आई हैं, और ख़ुद ही आने के लिए बोल रही हैं! क्या आप ऐसे ही कन्या खिलाती हो…?”
भाभी ने कहा-“हाँ,ये यहीं पास की ग़रीब बस्ती की लड़कियाँ हैं,मैं तो इन्हीं को खिलातीहूँ।”
तुरंत मैंने आश्चर्य से कहा-“लेकिन अम्मा से तो हम यही सुनते आए हैं,कि कन्या भोजन के लिए लड़कियाँ अच्छे वर्ण की होनी चाहिए,तो फ़िर आप इनमें से किसका वर्ण क्या है,कैसे जानोगी…? और कन्या को निमन्त्रण भी तो हम लोग ही देने जाते थे, लेकिन आप तो इस तरह..!”
भाभी ने कहा-“हम लोग शहर के संभ्रांत इलाके में रहते हैं,और यहाँ के बच्चों को बुलाने से मुझे डर लगता है…! जानती हो एक बार,मिसेज शर्मा की बेटी पता नहीं,किस वजह से बीमार हुई और उन्होंने मुझ पर आरोप लगा दिया कि,पता नहीं जी,कन्या भोज में आपने क्या खिला दिया हमारी बच्ची को..! ये सुनकर तो मुझे बहुत दुःख हुआ कि बिना किसी ग़लती के मैं अपराधी बना दी गई थी..! और उस घटना के बाद से,मेरा दृष्टिकोण ही बदल गया। पुण्य,पाप,कुल,धर्म का तो मुझे पता नहीं,पर अब इन्हीं ग़रीब बच्चों को खाना खिलाना ज़्यादा श्रेष्ठ और संतोषजनक लगता है मुझे। हर बार इनकी ज़रुरत का सामान कभी स्कूल बैग,कभी टिफ़िन, कभी कॉपी-पेन,साथ में चॉकलेट और मेक-अप का सामान आदि देकर मुझे ख़ुशी मिलती है।”

ये सुनकर तो मुझे यही लगा कि कुछ परिवर्तन के लिए दृष्टिकोण स्वयं मार्ग प्रशस्त करने लगता है..।

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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