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प्रतीक्षा

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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शरद पूर्णिमा स्पर्धा विशेष…..

तुमको देखने प्रिये आँखें मेरी तरस गईं,
पूर्णिमा की रात अब तो अमावस बन गई।
चाँद भी हँस-हँस के मुझको ताने मारता,
चाँदनी के बहाने वो भी यहाँ है ताकता।
मीठी-मीठी ये हवा मन को मेरे डस गई,
पूर्णिमा की रात अब तो अमावस बन गई…॥

कृष्ण ने भी देखो छेड़ी कैसी मधुर तान है,
गोपियाँ संग झूमती हैं गाती मधुर गान हैं।
सखियाँ भी मेरी अपने प्रियतमों के साथ हैं,
आँखों में आँखें डाले और हाथों में हाथ हैं।
मेरे नयनों में क्यूँ धारा आँसूओं की बह गई,
पूर्णिमा की रात अब तो अमावस बन गई…॥

स्मृतियों में बसे हैं वही गीत मधुर प्यार के,
प्यार के,दुलार के,और कभी मनुहार के।
आज मैँ बैठी अकेली निहारती हूँ द्वार को,
देखती खुद को कभी और कभी श्रृंगार को।
करते-करते इंतज़ार अब रात ये भी ढल गई,
पूर्णिमा की रात अब तो अमावस बन गई…॥

परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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